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________________ २८ खरगसेन इस शिक्षासे सोने चॉदीकी परख करने लगे, बही-खाते विधिपूर्वक लिखने लगे और हाटमें बैठकर सराफी सीखने लगे । बनारसीदास भी इसी तरह व्युत्पन्न होकर नौ बरसकी अवस्था में ही कनाई करने में लग गये। इसके सामने भी जो विशेष शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे उनके लिए भी प्रबन्ध था । अनारसी. दास जब १४ वर्षके हुए, तब उन्होंने पं देवदत्तके पास नाममाला, अनेकार्थ, ज्योतिष, कोक, और चार सौ श्लोक पढ़े ! इसके बाद जब जौनपुरमें भानुचन्द्र यति आये, तब उनसे उपासरेमें पंचसंधि, स्फुट श्लोक, छन्दकोश, श्रुतत्रोध, स्नात्रविधि, प्रतिक्रमण आदि मुखाग्र किये। इस तरह आजकलकी दृष्टिले उन्होंने पढ़ा-लिखा तो कुछ अधिक नहीं परन्तु अपनी स्वाभाविक प्रतिभाके कारण आगे चलकर वे अच्छे रिचारक और सुकवि हो गये। कवित्व शक्ति तो उनम जन्मजात थी। तभी १४ वर्षकी अवस्थामें एक हजार पद्यों के एक लवरसयुक्त काव्यकी रचना कर डाली। इश्कबाजी जिस तरह बनारसीदासमें कवित्वशक्तिका विकास समयसे बहुत पहले हो गया उसी तरह उनका यौवन भी जल्दी ही विकसित हुआ। पन्द्रह नको अवस्थामें ही वे इश्कमें पड़ गये और उसमें इतने मशगूल हो गये कि न किसीकी परवा की और न लोक-लाजका कोई खयाल किया। अपनी ससुराल खैराबादमें जाकर वे जिस रोगसे आक्रान्त हुए उसके विवरणसे स्पष्ट मालूम होना है कि वह गर्मी या उपदंश था और उसीका यह परिणाम हुआ कि उनके एकके बाद एक नौ बच्चे हुए परन्तु उनमेसे एक भी नहीं बचा, सब थोड़े गोड़े दिन ही रहकर कालके गालमें चले गये और दो स्त्रियाँ प्रसूति-कालमें ही मर गई । बनारसीदासके एक साथी धामदास थे जिनके विषय में लिखा है कि वे कुपूत थे, कुसंगतिमें रहते थे, कुव्यसनी थे, धन बरबाद करते थे और नशा करते थे। इससे मालूम होत है कि उस समय शहरोंके तरुण कितने व्यसनाधीन थे और उनके गुरुजनोंका उनपर कितना कम अंकुश था। जैन गुरुके पास धर्मशिक्षा लेते हुए भी वे व्यसनसे मुक्त न हो सके। चौदह वर्षको अवस्थामें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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