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________________ "शासनके बारे में जान पड़ता है कि अमन अमान काफी था। बनारसीदासने पंजाबमें रोहतकसे लेकर बिहार में पटना तक कई सार किये। एक दफा रास्ता भूलकर चोरोंके गाँवमें खतरेमें पड़े, पर ब्राह्मण बनकर छूट गये। दूसरी दफा इनके साथियों का एक जगह गाँववालोंसे झगड़ा हो गया। उनकी शिकायतपर दीवानी और फौजी अफसरोंने तहकीकात की और इसका भी नतीजा यह हुआ कि मुकदमा आसानीसे झूठा साबित हुआ और इन्हें कोई तकलीफ नहीं उठानी पड़ी । मालूम होता है कि उस समय व्यापारी कीमती सामान लिए हुए इधरसे उधर तक आते जाते थे । हुंडी परचे खूब चलते थे। । " समाज खुशहाल मालूम होती है । भूखों और मंगते फकीरोंका कहीं जिक्र नहीं । लोग एक दूसरेकी मदद करते थे। बनारसीदासको आगरे के हलवाईने छह महिने तक मुफ्त ( उधार ) कचौरियाँ खिलाई । पचपन सालोंमें एक दफा अकाल पड़ा। जहाँगीरके समयमें ताऊन फैला। इसके अलावा कोई बड़ी मुसीबत नहीं आई । राजनीतिकी ऐसी घटनाओं जैसी सलीमकी बगावतका जरूर यह असर होता था कि जौहरी लोग शहरसे इधर उधर भाग जाते थे। लोग जत्थे बनाकर यात्राओंको जाते । बनारसीदासने कहीं किसी तरहकी रोक-थामका जिक्र नहीं किया। __ " स्त्रियोंकी बहुत कद्र नहीं थी। पुरुष-स्त्रीका प्रेम और बराबरीका नाता नहीं था। बनारसीदासकी स्त्रीका देहान्त होता है, एक ही नाई मरने की खबर के साथ दूसरी लड़कीकी सगाई लाता है। वे अपनी ब्याहताके होते हुए इधर उधर आशिकी करते फिरते हैं । लेकिन पत्नी अपना धर्म समझती है कि पतिकी सेवा करे और गाढ़े समयमें अपना सारा धन उसको सोंप दे। " लोगोंमें धर्मकी बहुत चर्चा थी । जीवनका यही ध्येय था कि मनमें शान्ति, समता, स्नेह उजागर हो। इसी के साथ अन्धविश्वास और जादू टोना भी खूब चलता था। " अर्घ-कथानकके पढ़नेसे हिन्दुस्तान के मध्यकालके इतिहासके समझने में मदद मिलती है और समाज और राजकी अच्छाई बुराईका पता लगता है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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