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________________ अर्ध-कथानक से मालूम होता है कि उस समय जयपुरसे लेकर आगर, फतेहपुर, अलीगढ़, मेरठ, दिल्ली, इलाहाबाद, खैराबाद, ( अवध ), पटना, और बंगाल श्रीमाल, ओसवाल, अग्रवाल व्यापारी फैन हुए थे और उनकी काफी प्रतिष्ठा थी । नवाबों, सूबेदारों और हाकिमोंसे उनका विशेष सम्बन्ध रहता था। ऐसा जान पड़ता है कि वे अधिकांश में शिक्षित भी होते थे, और नवाबों, हाकिमोंकी भाषा भी जानते थे । दादा मूलदास हिन्दुगी फारसी पढ़े थे, खरगसेन पोतदारीका काम कर सकते थे, बनारसीदास विविध देशभाषाप्रतिबुद्ध थे ! सामाजिक स्थिति डा० ताराचन्दने अर्ध-कथानककी आलोचना ( विश्ववाणी, फरवरी १९४४ ) करते हुए लिखा है " बनारसीदास अकबर, जहाँगीर, और शाहजहाँ के समकालीन थे। बादशाहोंके लिए उनके दिलमें भक्ति थी। अकबरको मृत्युका समाचार सुनकर वे बेहोश होकर सीढ़ीपर से गिर पड़े और लहूलुहान हो गये । जहाँगीर और शाहजहाँका आदर के साथ नाम लिया है। मुगल सूबेदारोंकी बाबत लोगों में पहलेसे शोहरत होती थी कि उनका बरतावा कैसा है । अगर कोई हाकिम कड़ा मशहूर होता था तो मालदार साहूकारोंमें खलबती मच जाती थी । लेकिन ऐसे हाकिम कम होते थे । हाकिमों और साहूकारोंमें अच्छे सम्बन्ध होते थे । बनारसीदास चीन किलोलाको नाममाला श्रुतोष वगैरह ग्रन्थ पढ़ते थे। "" पड़ा हुआ खेड़ा था । ऐसी दशा में वर्तमान बीहोली गाँव अर्ध-कथानक में बतलाया बोली नहीं हो सकता जो रोहतक के निकट था । संभव है, उनके समयका बीहोली गांव अत्र रहा ही न हो या अत्र उसका और नाम हो । " १- प्रा० पोतदार लिखते हैं, " तत्कालीन शिक्षा - प्रसार के विषय में इससे यह निश्चित अनुमान किया जा सकता है कि सब नहीं तो कमसे कम व्यापारी वर्ग के बहुत से लोग हिन्दी और फारसी उस समय पढ़ते थे और लिखने पढ़ने में निष्णात होते थे | >> २ - इसके पिता नवाब कुलीचखाँने जौहरियोंपर बड़ा जुल्म किया था । यह इन्दूजान (तूरान देश ) का रहनेवाला जानी कुरबानी जातिका तुर्क था । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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