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________________ पूर्व पुरुष बनारसीदास एक सम्पन्न और सम्मान्य कुलमें उत्पन्न हुए थे। उनके पितामह भूलदास हिन्दुगी और फारसीके ज्ञाता थे और सं० १६०८ में नरवर (ग्वालियर) के किसी मुगल उमरावके मोदी बनकर गये थे। उनके मातामह मदनसिंह चिनालिया जौनपुर के नामी जौहरी थे और पिता खरगसेनने कुछ समय तक बंगालके सुल्तान सुलेमान पठानके राज्यमें चार परगनोंकी पोतदारी की थी। उसके बाद वे जवाहरातका व्यापार करने लगे और इलाहाबादमें कुछ समय तक शाहजादा दानियाल (दानिसाह) की सरकार में जवाहरातका लेनदेन करते रहे थे। इसी तरह उनके रिश्तेदार और मित्र भी धनी-मानी थे। उन्होंने अपनी जाति श्रीमाल और गोत बिहोलिया लिखा है और लोगोंस सुनसुनाकर बतलाया है कि रोहतकके निकट बीहोली' गाँवमें राजवंशी राजपत रहते थे, वे गुरुके उपदेशसे अधभूत कर्म छोड़कर जैनी हो गये और ( नमोकार ) मन्त्रकी माला पहिनकर उन्होंने श्रीमाल कुल और बीहोलिया गोल राया। १-अकबरके तीन बेटों-सलीम, मुराद और दानियाल में यह तीसरा था ! इसे सात हजारी मनसब दिया गया था। रहीम खानखानाका यह दामाद था । संवत् १६५६ के लगभग यह इलाहाबादमें था । बीजापुरके सुल्तानकी लड़की के साथ भी १६६१ में इसकी शादी हुई थी। २-- इस गाँरके बारे में मैंने रोहतकके वकील बाबू उग्रसेनजीसे पूछताछ की, तो उन्होंने लिखा कि "बीहोली गाँव अब करनाल जिले में पानीपतसे कुछ दूर नम्नाके किनारे है और रोहतकसे लगभग ३५ कोसके फासिलेपर होगा।" बाबू नयभगवानजी वकीलने बड़े परिश्रमसे खोज-बीन की और लिखा कि 'बीहोली पानीपत तहसीलका एक गाँव है, जो पानीपतसे उत्तरकी ओर .१० मीलपर है। बाट जाटोंकी बस्ती है। इस गाँवका पुराना इतिहास जानने के लिए सन् १८८० के बन्दोबस्तके समय तैयार की गई 'कैफियत दही' देखी। उससे मालूम हुआ कि अबसे २० पीढ़ी पहले -सन् १४४० के लगभग दो जाटोंने उस समयके हाकिमसे इजाजत लेकर इस गाँवको फिरसे आबाद किया था। उस समय - वह उजड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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