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________________ है और वास्तव में उसी व्यक्तिको जिन्दगी सच्ची मानी जानी चाहिए, जिसने उषा ओर अन्धकार, युद्ध और शांति उतार और चढ़ाव सभीका अनुभव अपने जीवनमें किया हो । 33 इस कसौटी पर भी कविवर वनारसीदासका जीवन बिल्कुल सजीव सिद्ध होता है । भूमिका समाप्त करनेके बाद हमें दो ग्रन्थ पढ़नेके लिए मिले. एक तो जर्मन विद्वान् जार्ज मिश ( George Misch ) द्वारा लिखित A history of Auto.biography in antiguity अर्थात् प्राचीनकालके आत्मनरितोंका इतिहास और दूसरे स्टीफन विगकी महत्त्वपूर्ण पुस्तक 'Adents in Self-portraiture' यानी ' आत्मचित्रण कलामें कुशल ' । ये दोनों ग्रन्थ जर्मन भाषासे अनुवादित किये गये हैं । पहला ग्रन्थ दो जिल्दोंमें जर्मनी में ५० वर्ष पहले छपा था और दूसरा सन् १९२५ में । इससे भी पूर्व सन् १७९० में जर्मन कवि तथा विचारक हर्डरने कितने ही द्वानांद्वारा विभिन्न भाषाओंके आत्मचरितात्मक वृत्तान्त संग्रह कराके उन्हें प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया था । हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दीमें भी इसी प्रकारका एक बृहद् ग्रन्थ लिखा जा सकता है | जब तक वह न लिखा जाय तब तक ' आप बीती और जगजीती ' नामक एक निबन्ध जिसमें जीवनचरितों तथा आत्मचरितका परिचय तथा विश्लेषण हो, छपाया जा सकता है । बहुत सम्भव है कि महाकवि तुलसीदासजीकी, जो कविवर बनारसीदासजीके समकालीन थे, आत्म-चरित लिखने में उतनी सफलता न मिलती जितनी बनारसीदासजीको मिली | यदि किसी चित्र विन्दवानेवालेको तस्वीर देते समय विशेष रूपसे आत्म चेतना हो जाय तो उसके चेहरेकी स्वाभाविकता नष्ट हो जायगी । उसी प्रकार आत्मचरित लेखकका अहंभाव अथवा पाठक क्या खयाल करेंगे यह भावना उसका सफलताके लिए विघातक हो सकती हैं । 6 आत्म-चित्रण में दो ही प्रकारके व्यक्ति विशेष सफलता प्राप्त कर सकते हैं, या तो बच्चोंकी तरह के भोले भोले आदमी, जो अपनी सरल निरभिमानता से यथार्थ बातें लिख सकते हैं अथवा कोई फक्कड़ जिसे लोक लज्जासे कोई भय नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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