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________________ जो घ्यक्ति अपनेको नितान्त साधारण समझते हैं वे भी यदि अपनी अनुभूतियोंको लिख सके तो अनेक उपदेशप्रद और मनोरंजक ग्रन्थोंका निर्माण हो सकता है। इस अवसरपर हमें स्वर्गीय पं० प्रतापनारायणजी मिश्रका एक वाक्य याद आ रहा है, जो उन्होंने आत्मचरितकी भूमिकामें लिखा था। दुर्भाग्यवश वे पुस्तकको बिल्कुल अधूरा ही छोड़ गये। मिश्रजीने लिखा थाः-- __" जिन पदार्थोंको साधारण दृष्टिसे लोग देखते हैं वे कभी कभी ऐसे आश्चर्यमय उपकारपूर्ण अँचते हैं कि बड़े बड़े बुद्धिमानोंकी बुद्धि चमत्कृत हो रहती है ! एक घासका तिनका हाथमें लीजिए और उसकी भूत एवं वर्तमान दशाका विचार कर चलिए तो जो जो बातें उस तुच्छ तिनकेपर बीती हैं, उनका ठीक ठीक वृत्तान्त तो आप जान ही नहीं सकते, पर तो भी इतना अवश्य सोच सकते हैं कि एक दिन उसकी हरीतिमा (सब्ज़ी) किसी मैदानकी शोभाका कारण रही होगी। कितने ही क्षुधित पशु उसके खा जानेको लालायित रहे होंगे, अथवा उसको देखके न जाने कौन डर गया होगा कि शीघ्र खोदो, नहीं तो वर्षा होने पर घर कमजोर कर देगा, सुखसे बैठना कठिन पड़गा। इसके अतिरिक्त न जाने कैसी मन्द प्रखर वायु, कैसी घनघोर वृष्टि, कैसे कोमल कठोर चरणप्रहारका सामना करता करता आज इस दशाको पहुँचा है ? कल न जाने किसकी आँखोंमें खटके, न जाने किस ठौरके जल व पवनमें नाचे, न जाने किस अग्निमें जलके भस्म हो, इत्यादि । जब तुच्छ वस्तुओंका चरित्र ऐसे ऐसे भारी विचार उत्पन्न करता है, तो यह तो एक मनुष्यपर बीती हुई बातें हैं, सारग्राही लोग इन बातोंसे सैकड़ों भली बुरी बातें निकालके सैकड़ों लोगोंको चतुर बना सकते हैं।" स्टीफन ज्विग (विश्वविख्यात कलाकार) का अनुरोध था कि मामूली आदमियोंको भी अपने संस्मरण लिख डालने चाहिए; और किसीके लिए नहीं तो उनके घरवालों तथा बाल-बच्चोंके लिए ही वे मनोरंजक तथा शिक्षाप्रद सिद्ध होंगे । उनका विश्वास था कि प्रत्येक मनुष्य के जीवनमें कुछ भीतरी या बाहरी अनुभूतियाँ ऐसी होती हैं, जो लिपिबद्ध करने योग्य हैं। १ जनवरी सन् १९५७ के टाइम्स आफ इण्डियामें यही बात श्रीयुत सी. एल. आर. शास्त्रीने अपने एक छोटे-से निबन्धमें लिखी थी। उनका कथन है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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