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his life and they are not written, and can't be written. Every day would make a whole book of eighty thousand words-three hundred and sixty five books a year. Biographies are but the clothes and buttons of the man. The biography of the man himself can't be written. "
इसका सारांश यह है “ मनुष्य के कार्य और उसके शब्द उसके वास्तविक जीवनके, जो लाखों करोड़ों भावनाओंद्वारा निर्मित होता है, अत्यल्प अंश हैं । अगर कोई मनुष्यकी असली जीवनी लिखनी शुरू करे तो एक दिनके वर्णन के लिए कमसे कम अस्सी हजार शब्द तो चाहिए और इस प्रकार साल भरमें तीन सौ पैंसठ पोथे तय्यार हो जावेंगे ! छपनेवाले जीवन-चरितोंको आदमीके कपड़े और बटन ही समझना चाहिए किसीका सच्चा जीवन-चरित लिखना तो सम्भव नहीं । "
फिर भी छसौ पचहत्तर दोहा और चौपाइयोंमें कविवर बनारसीदासजीने अपना चरित्र चित्रण करने में काफी सफलता प्राप्त की है और जैसा कि हम ऊपर लिख चुके हैं उनके इस ग्रन्थमें अद्भुत संजीवनी-शक्ति विद्यमान् है । उनके साम्प्रदायिक ग्रन्थोंसे यह कहीं अधिक जीवित रहेगा ।
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यद्यपि हमारे प्राचीन ऋषि महर्षि 'आत्मानं विद्धि ' ( अपनेको पहचानो ) का उपदेश सहस्रों वर्षोंसे देते आ रहे हैं पर यह सबसे अधिक कठिन कार्य है और इससे भी अधिक कठिन है अपना चरित्र चित्रण | यदि लेखक अपने दोषोंको दबाके अपनी प्रशंसा करे तो उसपर अपना ढोल पीटनेका इलज़ाम लगाया जा सकता है और यदि वह खुल्लमखुल्ला अपने दोषोंका ही प्रदर्शन करने लगे तो छिद्रान्वेषी समालोचक यह कहते हैं कि लेखक बनता है और उसकी आत्म-निन्दा मानों पाठकों के लिए निमन्त्रण है कि वे लेखककी प्रशंसा करें !
अपनेको तटस्थ रखकर अपने सत्कर्मों तथा दुष्कमोंपर दृष्टि डालना, उनको विवेककी तराजूपर बावन तोले पाव रत्ती तौलना, सचमुच एक महान् कलापूर्ण कार्य है। आत्म-चित्रण वास्तव में 'तरवारकी धार धावनो ' है, पर इस कठिन प्रयोगमें अनेक बड़े से बड़े कलाकार भी फेल हो सकते हैं और छोटे-से छोटे लेखक और कवि अद्भुत सफलता प्राप्त कर सकते हैं
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