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________________ हाय माल क्वाँर सुदी ३. नाबाद १९८१. वि० बुधवारको दिनके ११ को पर प्यारा ज्येष्ठ गुत्र उमाशंकर मुझ नूढ़े आपसे पहले ही स्वर्गको चला गया। हाय भेटा, अब मेरी क्या दुर्गति होगी: धारा पुत्र पाँच मामसे बीमार था! बहुतेरा इलान किया कराया कुछ भी लाभ न हुटा ! प्यारे पुत्रका क्रोध बढ़ता हो गया, बहुतेरा समझाया, कुछ फल न मिला । भरनेने दिन अच्छा भला बातें कर रहा है । यकायक साँस बढ़ने लगा। चि० हरिशकर और रामलाल ऋषिने बोलते बोलते ही अचेत होनेपर जमीन पर ले लिया है केवल दो मिनट प रहा, दम निकल गया ! हाय बेटा ! उमाशंकर अब कहाँ! आज समाशंकर सुत प्यारा, हाय हुआ हम सबसे न्यार । हैं शङ्कर कविराज सुग्ख सकटद्वारा छिना। निरत दिवाल्या बाज, ना पाशङ्कर मिना ।। सहकारमें नारे कितने अनाने पिलाओंपर यह बत्रपात होता है और पुत्रविहीन कितनी दिवालियाँ उन्हें अपने जीवन में देखनी पड़ती है । जब स्वर्गीय पण्डित पासिंहजी शर्माने महाकवि अकबरके लोटे लड़के हाशमकी देवक्त मौतपर समवेदनाका पत्र भेजा था तो उसके जवाबमें अकबर साहबने लिखा था: अगरचे हवादसे आलम ( सांसारिक विपत्तियोंकी दुर्घटनाएँ ) पेशे नजर रहते हैं और नसीहत हासिल किया करता हूँ, लेकिन हाशम मेरा पूरा कायममुकाम (प्रतिनिधि, कवितासम्पत्तिका सच्चा उत्तराधिकारी) तय्यार हो रहा था और मेरे तमाम दोस्तों और कद्र अफजाओंसे मुहब्बत रखता था। उसकी जुदाईका नेचरल तौरपर बेहद कला हुआ है..." उस समय अकबरने एक कविता लिखी थी, जिसका एक पद्य यह है-- " आगोशसे सिधारा मुझसे यह कहनेवाला 'अब्बा, सुनाइए तो क्या आपने कहा है'। अशआर हसरत-आगी कहनेकी ताब किसको अब हर नजर है नौहा, हर साँस मरसिया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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