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________________ किया। पिताजीसे आज्ञा माँगी तो उन्होंने उत्तर दिया, “ उधर अपने लोग बहुत कम हैं, मार्ग कठिन है, लोग भाँग और गाँजा पीनेवाले हैं और मथुराकी स्त्रियाँ मायावी होती हैं।" स्त्रियोंके मायावी होनेकी बात पढ़कर हँसी आए विना नहीं रहती। दक्षिणवालोंके लिए मथुराकी स्त्रियाँ मायावी होती हैं और इधर उत्तरवालोंके लिए बंगालकी स्त्रियाँ जादूगरनी होती हैं, जो आदमीको बैल बना देती हैं और बंगालियोंके लिए कामरूप (आसाम) की स्त्रियाँ कपटी और भयंकर होती हैं । बंगालमें पूरे ग्यारह वर्ष रहनेके बाद भी हम 'बछियाके ताऊ' नहीं बने, मनुष्य ही बने रहे, यही इस बातका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि ये बातें कोरी गप हैं । हाँ, तो विष्णुभटको मथुराकी मायावी स्त्रियोंसे सुरक्षित रखनेके लिए उनके चाचा भी साथ हो लिये थे और इन्हीं चाचा भतीजेका यात्रा-वृत्तान्त आज सौ वर्ष बाद एक ऐतिहासिक ग्रन्थ बन गया है ! क्या ही अच्छा होता यदि हिन्दीके धुरंधर विद्वान् आगे आनेवाली सन्तानके लिए अपनी अनुभूतियोंको सुरक्षित रखते । यदि स्वर्गीय द्विवेदीजीने अपना जीवनचरित लिख दिया होता तो हमें दौलतपुरसे ३६ मील दूर रायबरेलीको आटा-दाल पीठपर लादे हुए पैदल जानेवाले उस तपस्वी बालकके और भी वृत्तान्त सुननेको मिलते, जो रोटी बनाना नहीं जानता था और जो इसलिए दालहीमें आटेकी टिकियाँ डालकर और पकाकर खा लिया करता था। संसार दुःखमय है और उसमें निरन्तर दुर्घटनाएँ घटा ही करती हैं। यदि कोई मनुष्य हृदयवेदनाको चित्रित कर दे तो वह बहुत दिनोंतक जीवित रह सकती है। कोई बारह सौ वर्ष पहले के पो चई नामक किसी चीनी कविने अपनी तीन वर्षकी स्वर्गीय पुत्री स्वर्ण-घंटी के विषयमें एक कविता लिखी थी, वह अब भी जीवित है। __ जब कविवर शङ्करजीने क्वाँर सुदी ३ सम्वत् १९८१ को अपनी डायरीमें निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखी थों उस समयकी उनकी हार्दिक वेदनाका अनुमान करना भी कठिन है " महाकाल रुद्रदेवाय नमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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