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________________ अर्थात् " कितने ही महीनोंतक हमारी कुटीपर दुःखकी घटा छाई रही।" यह बात ध्यान देने योग्य है कि ऐलेगजेण्डर क्रोपाटकिन ज्योतिर्विज्ञानके बड़े पण्डित थे, जारकी रूसी नौकरशाहीने निरपराध ही उन्हें साइबेरियाके लिए निर्वासित कर दिया था और वहाँसे लौटते समय उन्होंने आत्म-घात कर लिया था। अपने चारित्रिक स्खलनोंका वर्णन कविवरने इतनी स्पष्टतासे किया है कि उन्हें पढ़कर अराजकवादी महिला ऐमा गोल्डमैनके आत्म-चरितकी याद आ जाती है। अंग्रेजीके एक आधुनिक आत्मचरित* में उसकी लेखिका ऐथिल मैनिनने अपने पुरुष-सम्बधोंका वर्णन निःसंकोच भावसे किया है पर उसे इस बातका क्या पता कि तीन सौ वर्ष पहले एक हिन्दी कविने इस आदर्शको उपस्थित कर दिया था। उनके लिए यह बड़ा आसान काम था कि वे भी "मो सम कौन अधम खल कामी" कहकर अपने दोषोंको धार्मिकताके पर्दे में छिपा देते। उन दिनों आत्मचरितोंके लिखनेकी रिवाज़ भी नहीं थी-आजकल सो विलायतमें चोर डाकू और वेश्याएँ भी आत्मचरित लिख लिख कर प्रकाशित करा रही हैं और तत्कालीन सामाजिक अवस्थाको देखते हुए कविवर बनारसीदासजीने सचमुच बड़े दुःसाहसका काम किया था। अपनी इश्कबाज़ी और तज्जन्य आतशक (सिफलिस) का ऐसा खुल्लमखुल्ला वर्णन करनेमें आधुनिक लेखक भी हिचकिचाएँगे । मानों तीन सौ वर्ष पहले बनारसीदासजीने तत्कालीन समाजको चुनौती देते हुए कहा था, " जो कुछ मैं हूँ, आपके सामने मौजूद हूँ, न मुझे आपकी घृणाकी पर्वाह है और न आपकी श्रद्धाकी चिन्ता ।" लोक. लज्जाकी भावनाको ठुकरानेका यह नैतिक बल सहस्रोंमें एकाध लेखकको है प्राप्त हो सकता है। कविवर बनारसीदासजी आत्मचरित लिखने में सफल हुए इसके कई कारण हैं, उनमें एक तो यह है कि उनके जीवनकी घटनाएँ इतनी वैचित्र्यपूर्ण हैं कि उनका यथाविधि वर्णन ही उनकी मनोरंजकताकी गारंटी बन सकता है। और दूसरा कारण यह है कि कविवरमें हास्यरसकी प्रवृत्ति अच्छी मात्रामें पाई जाती थी। अपना मजाक उड़ानेका कोई मौका वे नहीं छोड़ना चाहते। कई महीनों * * Confessions and impressions by Ethel Mannin. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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