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________________ अपने जीवन के पतझड़के दिनों में लिखी हुई इस छोटी सी पुस्तकसे यह आशा उन्होंने स्वप्न में भी न की होगी कि वह कई सौ वर्ष तक हिन्दी जगत् में उनके यशः शरीर को जीवित रखने में समर्थ होगी । कविवर बनारसीदासके आत्म-चरित ' अर्ध-कथानक ' को आद्योपान्त पढ़नेके बाद हम इस परिणामपर पहुँचे हैं कि हिन्दी साहित्यके इतिहासमें इस ग्रन्थका एक विशेष स्थान तो होगा ही, साथ ही इसमें वह संजीवनी शक्ति विद्यमान् है जो इसे अभी कई सौ वर्ष और जीवित रखनेमें सर्वथा समर्थ होगी । सत्यप्रियता, स्पष्टवादिता, निरभिमानता और स्वाभाविकताका ऐसा जबरदस्त पुट इसमें विद्यमान है, भाषा इस पुस्तककी इतनी सरल है और साथ ही साथ यह इतनी संक्षिप्त भी है, कि साहित्यकी चिरस्थायी सम्पत्ति में इसकी गणना अवश्यमेव होगी । हिन्दीका तो यह सर्वप्रथम आत्म-चरित है ही, पर अन्य भारतीय भाषाओंमें इस प्रकारकी, और इतनी पुरानी पुस्तक मिलना आसान नहीं । और सबसे अधिक आश्वर्यकी बात यह है कि कविवर बनारसीदासका दृष्टिकोण आधुनिक आत्म-चरित-लेखकोंके दृष्टिकोणसे बिल्कुल मिलता जुलता है । अपने चारित्रिक दोषोंपर उन्होंने पर्दा नहीं डाला है, बल्कि उनका विवरण इस खूबीके साथ किया है मानों कोई वैज्ञानिक तटस्थ वृत्तिसे विश्लेषण कर रहा हो । आत्माकी ऐसी चीरफाड़ कोई अत्यन्त कुशल साहित्यिक सर्जन ही कर सकता था और यद्यपि कविवर बनारसीदासजी एक भावुक व्यक्ति थे— गोमती में अपने ग्रन्थको प्रवाहित कर देना और सम्राट् अकबरकी मृत्युका समाचार सुनकर मूर्च्छित हो जाना उनकी भावुकताके प्रमाण हैं - तथापि इस आत्म-चरित में उन्होंने भावुकताको स्थान नहीं दिया । अपनी दो पत्नियों, दो लड़कियों और सात लड़कोंकी मृत्युका जिक्र करते हुए उन्होंने केवल यही कहा है : तदृष्टि जो देखिए, सत्यारथकी भाँति । ज्यों जाकौ परिगह घटे, त्यौं ताकौं उपसांति ॥ ६४४ यह दोहा पढ़कर हमें प्रिन्स क्रोपाटकिनकी आदर्श लेखनशैलीकी याद आ गई। उनका आत्म-चरित उन्नीसवीं शताब्दीका सर्वोत्तम आत्म-चरित माना जाता है । उसमें उन्होंने अपने अत्यन्त प्रिय अग्रजकी मृत्युका जिक्र केवल एक वाक्य में किया था : 46 A dark cloud hung upon our cottage for many months. ". Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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