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atarraare es धार्मिक कार्यों में अग्रणी हैं । संभव है कि यह कहान गोवरधनके लिए ही बनारसमें चली थी । गोवरधनकी विदग्ध गोष्ठीमें क्या क्या होता था इसका पता नहीं, शायद इसमें कला चर्चाके साथ साथ आध्यात्मिक विचारोंकी भी चर्चा होती रही होगी, क्योंकि राजा टोडरमल और गोवरधन धार्मिक विचार थे। यह भी संभव है कि अकबरकी देखादेखी गोवरधनने ata reet ढँगपर बनारसमें कोई गोष्ठी चलाई हो । पर जब तक इस संबंध में कुछ और सामग्री न मिले कोई ठीक मत निश्चय नहीं किया जा सकता ।
पंडित नाथूरामजीने बनारसीदासजीके अर्धकथानकका उद्धार करके तथा अपनी बड़ी भूमिकामें उस ग्रंथ में आई हुई सामग्रीका वैज्ञानिक रूपसे अध्ययन करके मध्यकालीन इतिहास और संस्कृतिके विद्यार्थियोंकी अपूर्व सेवा की है । मुझे आशा है कि भविष्य में अर्घकथानकका अनुवाद अंग्रेजी और दूसरो देशीय भाषाओं में भी होगा ।
प्रिन्स ऑफ वेल्स म्यूजियम, बम्बई ८-११-५७
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- ( डॉ० ) मोतीचन्द
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