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________________ इन अध्यात्म गोष्ठियोंका अकबरके दीन इलाही मतसे, जो बादशाह के अध्यात्मिक चिन्तनका परिणाम था, क्या सम्बन्ध था । अकबरने १५८२ ई० में दीन इलाहीकी स्थापना की, पर १५८७ के पहले इसके सिद्धान्तोंकी व्याख्या भी न हो सकी थी, और न इनपर कोई अलग से ग्रंथ ही लिखा गया था, यद्यपि दीन इलाहीके बाह्याचारों के विषय में बदायूनीने कुछ लिखा है । मोहसिन फानीने दबिस्तान-ए-माहिव में लिखा है कि दीनके निम्नलिखित दस सिद्धान्त थे, यथा(१) दान (२) दुष्टोंको क्षमा तथा शान्ति क्रोधका शमन, ( ३ ) सांसारिक भोगों से विरति, (४) सांसारिक बन्धनोंसे विरक्ति और परलोक चिन्तन, ( ५ ) कर्मविपाकपर ज्ञान और भक्ति के साथ चिन्तन, ( ६ ) अद्भुत कर्मोंका बुद्धिपूर्वक मनन, (७) सबके प्रति मीठा स्वर और मीठी बातें, (८) भाइयोंके प्रति अच्छा व्यवहार तथा अपनी बात पहले उनकी बात मानना, (९) लोगों के प्रति विरक्ति और ईश्वरके प्रति अनुरक्ति, ( १० ) ईश्वर - प्रेम आत्मसमर्पण और सर्वरक्षक परमात्मासे साक्षात्कार। दीन इलाहीमें व्यक्तिके पवित्र आचरणपर ध्यान रखा गया है । पर किसी मजहबको चलानेके लिए बाह्य कर्मों और संघटनकी भी आवश्यकता पड़ती है और दीन इलाही भी इसका अपवाद नहीं है । फिर भी इसमें पुरोहितीको स्थान नहीं है । सुफियाना मत होनेसे इसमें धर्म मन्दिरकी आवश्यकता नहीं थी क्योंकि एक अवस्था विशेषको पहुँचनेहीपर लोग इस मतमें प्रवेश पा सकते थे गो कि इस बात के भी प्रमाण हैं कि बादशाहको प्रसन्न करनेके लिए भी लोग दीन इलाहीमें घुसते थे। धर्म के प्रति सहानुभूति ही इसका मुख्य लक्ष्य था । दीक्षाके पहले बादशाह के प्रति वफादारी आवश्यक थी । प्रति रविवारको दीक्षा लेनेवाला बादशाह के चरणों में नत होता था । दीक्षा लेनेके बाद उसकी गिनती चेलोंमें होती थी और वह 'अल्लाहो अकबर' अंकित रास्त पहननेका अधिकारी होता था । चेले बादशाह के सामने जमीनबोस होते थे और वह उन्हें दर्शनियाँ मंजिलसे दर्शन देता था । दीन इलाहीवाले मृतक भोज नहीं करते थे, कमसे कम मांस खाते थे, अपने द्वारा मारे पशुका मांस नहीं खाते थे, कसाइयों मछुओं और बहेलियों के साथ भोजन नहीं करते थे तथा गर्भिणी, वृद्धा और वंध्याका सहगमन उनके लिए वर्जित था । चेले दो प्रकारके होते थे, पूरा धर्म माननेवाले और केवल रास्तके अधिकारी । Jain Education International ---- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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