________________ 135 १४-विज्ञप्तिपत्रमें आगरेके श्रावक कार्तिक सुदी 2 सोमवार सं० 1667 को तपागच्छके आचार्य विजयसेनको आगराके श्वेताम्बर जैन संघकी ओरसे एक विज्ञप्तिपत्र भेजा गया था, उसमें वहाँके 88 श्रावकों और संघपतियोंके नाम दिये हुए हैं, जिनमेंसे कुछ नाम अर्द्धकथानकमें आये हैं १-वर्द्धमानकुंअरजी-अ० क० के 579 वें पद्यमें लिखा है, "वरधमानकुंअरजी दलाल, चल्यौ संघ इक तिन्हके ताल / " विज्ञप्तिपत्र (पंक्ति 30) में इनका नाम है और इन्हें संघपति बतलाया है। सं० 1675 में बनारसीदासजीने इन्हीके संघके साथ अहिछत्ता और हथनापुरकी यात्रा की थी। २-बंदीदास-इनके पिताका नाम दूलह साह और बड़े भाईका नाम / उत्तमचन्द जौहरी था। ये बनारमीदासके बहनोई थे और मोतीकटले में रहते थे। अ० क. 311 में सं० 1667 के लगभग इनकी चर्चा की गई है / विज्ञप्ति पत्र (पं० 30 ) में ' साह बंदीदास' नाम दिया है। 3 ताराचन्द साहू-परबत तांबीके दो पुत्र थे, ताराचन्द और कल्याण मल्ल / कल्याणमलकी लड़की बनारसीदासको ब्याही थी। उसे लिवानेके लिए ताराचन्द आये थे और सं० 1668 में इन्होंने बनारसीदासको अपने घर लाकर रक्खा था। अ० क० 109, 344, 346, 349, 351 में इनका जिन है। वि० 50 की पं० 32 में इन्हें साह ताराचन्द लिखा है। ४सबलसिघ मोठिया-ये आगरेके वैभवशाली धनी थे। अ. क० 474-75, 567, 577 में इनका, 1672-73 के लगभग जिक्र आया है / विज्ञप्तिपत्र (पं० 35 ) में संघपति सबलका नाम है / १-'एन्स्येंट विज्ञप्तिपत्राज' में डा. हीरानन्द शास्त्रीने इसे बडोदाराज्यकी ओरसे प्रकाशित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org