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________________ . दूसरा पद ' राजुल बीनती' है जिसके अन्तमें कहा है - राजमती सुरपुर गई प्रभु, नेमि कियौ सिवबास / मोतीहट जोगिनपुरै प्रभु, भणत भगौतीदास / / 7 इससे मालूम होता है कि यह योगिनीपुर या दिल्लीकी मोतीहाटमें रहते थे और कोई तीसरे ही भगवतीदास थे, अध्यातमी नहीं / १२--रूपचन्दकृत पदसंग्रहमें आनन्दघन अभी अभी मुझे अपने संग्रहमें स्व० गुरुजी (पन्नालालजी वाकलीवाल) के हाथका लिखा हुआ 'रूपचन्दकृत पदसंग्रह' मिला, जो उन्होंने जयपुरसे (सन् 1910) भेजा था। इसमें राग आसावरी, वसन्त, टोड़ी, विभास, विलावल, विहागड़ो गूबरी, केदारो, कल्यान, सारंग, नट, टोड़ी जौनपुरी, श्रीराग, कानरौ, आसा और सारंग, इन रागोंके 22 गीत हैं और इनके बाद जकड़ीसंग्रह है / यह जकड़ीसंग्रह उसी समय 'परमार्थ-जकड़ीसंग्रह' नामसे छपा दिया गया था। ' इनमेंके 17 गीतोंके अन्तिम चरणोंमें रूपचन्दका नाम है, पर शेष पाँचमें काजी महम्मद, रामानन्द, राज, पंदमकीरति, और आनन्दघनके नाम दिये हैं। इससे मालूम होता है कि ये पाँचों कवि उनके पूर्ववर्ती या समकालीन हैं और सभी अध्यातमी हैं। उनका संग्रह स्वयं रूपचन्दजीने अपने पदोंके साथ कर लिया है। इनमेंसे राज या राजसमुद्र और आनन्दघनके पद नाहटाजीके भेजे हुए गुटकोंमें भी रूपचन्दजीके पदोंके साथ लिखे हुए मिले हैं / रामानन्द वैष्णव सन्त मालूम होते हैं / पदमकीर्ति कोई भट्टारक और काजी मुहम्मद कोई सूफी हैं। आनन्दधनका पद यह है-- रे परियारी बाउरे, मत घरी बजावै / नर सिर बांधै पाथरी, तू क्या घरी बजावै // रे घ० केवल काल-कला कलै, पै अकल न पावै / अकल कला घटमैं घरी, मोहि सो घरी भावै // रे घ० Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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