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________________ 131 इससे दो बातोंपर प्रकाश पड़ता है-एक तो यह कि संवत् 1701 में आगरेमें ज्ञाताओंकी एक मंडली या अध्यात्मियोंकी सली थी, जिसमें संघवी जगजीवन, पं० हेमराज, रामचन्द, संघी मथुरादास, मवालदास, और भगवतीदास थे। भगवतीदासको 'स्वपरप्रकाश' विशेषण दिया है / ये भगवतीदास वही जान पड़ते हैं जिनका उल्लेख बनारसीदासजीने नाटक समयसार में निरन्तर परमार्थ चर्चा करनेवाले पंचपुरुषों में किया है। हीरानन्दजीने अपने दूसरे छन्दोद्ध ग्रन्थ पंचारि.काय (1711) में भी घनमल और मुरारिके साथ इन्हींका ग्यातारूपसे उल्लेख किया है। सं. 1655 के फतेहपुर निवासी बासूसाहुके पुत्र भगवतीदास दूसरे ही हैं और इनसे पहलेके हैं। दूसरी बात यह कि जाफर खाँ बादशाह शाहजहाँका पाँच हजारी उमराव था जिसके कि जगजीवन दीवान थे और जगजीवन के पिता अभयराज सर्कधिक सुखी सम्पन्न थे। उनके अनेक पत्नियाँ थीं जिनमेंसे सबसे छोटी मोहनदेसे जगजीवनका जन्म हुआ था। पूर्वोक्त गुटके (नं० 144 ) में ही भगवतीदासके दो पद मिले हैं सोइ गंवाई रातड़ी, दिन लालच खोया / क्या ले आया ले चल्या, क्या घरमंहि तेरा / परधन पंछी ज्यौं मिल्या, निसि बिरछ बसेरा / सरवर तजि हंसा चल्या, फिरि कियउ न फेरा // 1 कनक कामिनील्यौं रच्या, सोइ जनमु गंवाया। पिया सुखरसि बसि परउ, ...आपण डहकाया // बालू पेरत रैन गई, फिरि तेलु न पाया // 2 माया संगमु दुख सहै, फिरि गहत न लाजे / ज्यौं सुवटा नलिनी फंधइ, तिस छाडि न भाजे // पर नारी चोरी चुरी, अपजम जांग बाजै // 3 जीवदया भ्रम पालिए, मुख झूठ न कहिए / कीड़ी कुंजर सम गिनौ, ज्यौं सिवपुर जहिए / दास भगती यौं कहै, व्रत संजमु गहिए // 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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