________________ 130 अब मुनि नगरराज आगरा, सकल सोभ अनुपम सागरा / साहजहाँ भूपति है जहाँ, राज करै नयमारग तहाँ // 75 // ताको जाफरखां उमराउ, पंचहजारी प्रगट कराउ। ताको अगरवाल दीवान, गरगगोत सब बिधि परधान // 79 // संघही अभैराज जानिए, सुखी अधिक सब करि मानिए / बनितागण नाना परकोर, तिनमैं लधु मोहनदे सार // 80 // ताको पूत पूत-सिरमौर, जगजीवन जीवनकी ठौर / सुंदर सुभगरूप अभिराम, परम पुनीत धरम-धन-धाम // 81 / / काल-लबधि कारन रस पाइ, जग्यौ जथारथ अनुभौ आइ / / अहनिसि ग्यानमंडली चैन, परत, और सब दीसै फैन // 82 / / ग्यानमंडली कहिए कौन, जामै ग्यानी जन परनान / हेमराज पंडित परबीन, रामचंद ग्यायक गुनलीन // 83 // संगही मथुरादास सुजान, प्रगट भवालदास सुजवान (1) / स्वपरप्रकास भगौतीदास, इत्यादिक मिलि करें बिलास // 84 // स्यादवाद जिन आगम सुने, परम पंचपद अहनिसि धुनै / भेदग्यान बरनत इक रोज, उपज्यौ जिनमहिमारस चोज / / 85 // तब ही पंडित हीरानंद, विकट मोहरस-मगन सुछंद / / देखि कह्यौ अपनों ऊमहीं, क्या है जिन विभूति जो कहौं / 86 // तिनसौं कही साधु जे साधु, चहिए इहू भव्य आराधु / अरु जे निकट भव्य आतमा, ते साधत नित परमातमा / / 87 / / जिनविभूतिका जो अनुभौन, करें मुख्य जद्यपि है गौन / निहचे मारगकी इह गैल, मन निरमल हे साधे सैल || 88 / / पर इतनी मति हममैं कहां, बिधि बरनवै जहांकी तहां / अरु जो तुम सहायसौं कहै, तो अचरज कोऊ नहिं लहै / / 89 / / इतनी सुनि जगजीवन ज., आदिपुरान मंगाया तवै / इसे देखि तुम कहो निसंक, हम जाने हहै निकलंक // 90 इतना कारन लहि करि हीर, मनमें उद्दिम धेरै गहीर / समोसरन कृत रचनाभेद, जथापुरान समस्त निवद / / 91 एक अधिक सत्रहसौ समै, सावन सुदि सातमि बुध रमै / ता दिन सत्र संपूरन भया, समवसरन कबत परिनया / / 92 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org