________________ चली सोनारि सोहाग सुहाती। औ कलवारि पेम मदमाती // 5 बानिनि भल सैंदुर दै माँगा। कैथिनि चली समाइ न आँगा // 6 पटुइनि पहिरि सुरंग तन चोला / औ बरइनि मुख सुरस तँबोला // 7 चली फ्वनि सब गोहने, फूल डालि ले हाथ। . बिस्वनाथकी पूजा. पदुमावतिके साथ // 2013 पदमावतमें ही छत्तीसों जातियोंके प्रत्येक घरमें पद्मिनी स्त्रियाँ बतलाई हैं .. घर घर पुदुमिनि छतिसौ जाती। सदा बसन्त दिवस औ राती॥ जेहि जेहि बरन फूल फुलबारी। तेहि तेहि बरन सुगंध सो नारी // मध्यकालमें राजपुत्रोंके भी 36 कुलोंकी संख्या प्रसिद्ध हो गई थी। इसकी सूची ज्योतिरीश्वर ठक्करने ! 14 वीं शतीका प्रथम भाग) अपने वर्णरत्नाकर पृ० 31 मे दी है-डोड, पमार, विन्द, छोकोर, छेवार, निकुंभ, राओल चाओट, चांगल, चन्देल, चौहान, चालुकि, रठउल, करचुरि, करम्ब, बुधेल, बीरब्रह्म, वंदाउत, वएस वछोम, वर्धन, गुडिय, गुहिजउत, तुरुकि, सहिआउत; शिषर, सूर खातिमान, सहरओट, भांड, भद्र, भज्जमटि, कूढ, खरसान, क्षत्रीशओ कुली राजपुत्र चलुअह / ___ कुरी शब्द कुलका ही वाचक जान पड़ता है, उसमें नीच ऊँचका भेद नहीं है। इसलिए कुरीमें ऊँच नीच दोनों तरहकी जातियाँ गिनाई गई हैं / राजपुत्रों या राजपूतोंके कुल भी एक तरहसे कुरी हैं / ११-जगजीवन और भगवतीदास इधर भगवतीदास और जगजीवनके सम्बन्धमें कुछ नई बातें मालूम हुई हैं। पं० कस्तूरचन्दजी शास्त्रीने पं० हीरानन्दकृत समवसरणविधानका आद्यन्त अंश लिखकर भेजा है, जिसकी रचना सावन सुदी 7 बुधवार सं० १७०१में हुई थी और जो जयपुरके लूणकरणजी पांड्याके मन्दिरके गुटका नं० 144 में है। उसके निम्न पद्य उपयोगी हैं - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org