________________ 127 पोथियोंको पढ़ा करते थे और उन्हें सुननेके लिए वहाँ दस बीस आदमी इकट्ठे हो जाते थे / ये दोनों ही प्रेम-काव्य हैं और दोनोंके ही कर्ता सूफी हैं। विती-इसके कर्ता कुतबन चिश्ती वंशके शेख बुरहानके शिष्य थे और जौनपुरके बादशाह हुसेन शाह ( शेरशाहके पिता) के आश्रित थे। पदमावतके कर्ता मलिक मुहम्मद जायसी इनके गुरूभाई थे। मृगावती चौपाईदोहाबद्ध है और हिजरी सन् 909 ( वि० स० 1558) में लिखी गई थी। इसमें चन्द्रनगरके राजा गणपतिदेवके राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरा• रिकी कन्या मृगावतीकी प्रेम-कथाका वर्णन है / इस कहानी के द्वारा कविने प्रेम मार्गके त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधकके भगवत्प्रेमका स्वरूप दिखलाया है / बीच बीचमें सूफियोंकी शैलीपर बड़े सुन्दर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं / इसकी एक सम्पूर्ण प्रति अभी हाल ही फतेहपुर जिलेके एकलड़ा गाँवसे डा० रामकुमार वर्माको मिली है। हाल ही मालूम हुआ है कि काशी नागरीप्रचारिणी सभाके कलाभवनमें मंझनको मधुमालतीकी दो प्रतियाँ संग्रह की गई हैं जिनमें एक उर्दू लिपिमें है और दूसरी नागरीमें / सभा इसको शीघ्र ही प्रकाशित कर रही है। मधुमालती-इसके कर्ता मंझन नामके कवि हैं. परन्तु उनके सम्बन्धमें अभी तक और कुछ भी मालूम नहीं हुआ। स्व० पं० रामचन्द्र शुक्लने अपने 'हिन्दी साहित्यका इतिहास' में लिखा है कि "मंझनकी रची मधुमालतीकी एक खण्डित प्रति मिलती है जिससे इनकी कोमल कल्पना और स्निग्ध सहृदयताका पता लगता है / मृगावतीके समान मधुमालतीमें भी पाँच चौपाइयों ( अद्धालियो ) के उपरान्त एक दोहेका क्रम रक्खा गया है। पर मृगावतीकी अपेक्षा इसकी कल्पना विशद है और वर्णन भी अधिक विस्तृत तथा हृदयग्राही / आध्यात्मिक प्रेमभावकी व्यंजनाके लिए प्रकृतिके भी अधिक सुन्दर दृश्योंका समावेश मंझनने किया है।" जायसीने अपने पद्मावतमें अपने पूर्ववर्ती चार प्रेमकाव्योंका उल्लेख किया है जिनमें मधुमालती भी है 1-2- देखो पं० रामचन्द्र शुक्लकृत दि० सा० का इतिहास पृ० 106-7 ( 1999 का संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org