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________________ . 126 जहाँगीर उससे डरकर अहमदाबादमें कुछ दिनों के लिए आ रहे थे। कहते हैं कि उनके आनेके थोड़े ही दिन पीछे इस छुआछूतके रोगने अहमदाबादमें अपना डेरा आ जमाया था। सारांश यह कि अहमदाबादमें आगरा-दिल्लीसे और आगरा-दिल्लीमें पंजाबसे प्लेगका बीज आया था। उस समय प्लेगका चक्र यत्र तत्र आठ वर्ष के लगभग चला था। वर्तमान प्लेगकी नाई उस समय भी उसका चूहोंसे घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता था, अर्थत् उस समय जहाँ जहाँ रोगका उपद्रव होता था, चूहोंकी संख्यामें वृद्धि होती थी।" 3- उस समय हिन्दुस्तानमें जो यूरोपियन रहते थे, उन्हें भी प्लेगमें फँसना पड़ा था। वह काले और गोरोके साथ समदर्शीकी नाई तब भी एक-सा वर्ताव करता था। इस विषयमें मि• टेरी नामक ग्रंथकारने लिखा है, " नौ दिनके अरसे में सात अंग्रेजोंकी मृत्यु हो गई। प्लेगमें फँसनेके बाद इन रोगियोंमेंसे कोई भी चौबीस घंटेसे अधिक जीता नहीं रहा, बहुतोंने तो बारह घंटेमें ही रास्ता पकड़ लिया। " इतिहाससे पता लगता है कि सन् 1684 में औरंगजेब बादशाहके लश्करमें भी प्लेगने कहर मचाया था। 4- बनारसीदासजीके नाटक समयसार ग्रंथमें भी प्लेगका उल्लेख मिलता है। उसमें बंधद्वारके कथनमें जगवासी जीवोंके लिए कहा है "धरमकी बूझी नाहिं उरझे भरममाहिं, नाचि नाचि मर जाहिं मरी कैसे चूहे हैं। 43" उस समय प्लेगको मरी कहते थे / यद्यपि महामारी ( हैजा ) को भी मरी कहते हैं, परन्तु चूहोंका मरना यह प्लेगका ही असाधारण लक्षण है, हैजेका नहीं। ९-मृगावती और मधुमालती जब बनारसीदासजी आगरेमें अपनी सब पूँजी खो चुके थे और बिल्कुल खाली हाथ थे, तब समय काटनेके लिए वे मधुमालती और मृगावती नामक दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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