________________ 125 लिए विचारपूर्वक यह बात ठहराई गई कि इस मुहूर्तपर फिर प्रवेश करूँ और जब रोग धीमा पड़ जावे तब दूसरा मुहूर्त निकलवाकर आगरे जाऊँ / मृत आसफखाँकी बेटीने, जो खान आजमके बेटे अबदुल्लाखाँके घरमें है, बादशाहसे यह विचित्र चरित्र ताऊनके विषयमें कहा और उसके सत्य होनेपर बहुत जोर दिया। इससे बादशाहने वह घटना तुजुकमें लिख ली। " उसने कहा था कि एक दिन घरके आँगनमें एक चूहा दिखाई दिया। वह मतवालोंकी भाँति गिरता पड़ता इधर-उधर दौड़ रहा था। उसे कुछ सुझाई न देता था। मैंने एक लौण्डीसे इशारा किया। उसने उसकी पूंछ पकड़कर बिल्लीके आगे डाल दिया / पहले तो बिल्लीने बड़े मोदसे उछलकर उसको मुँहमें पकड़ा किन्तु पीछे घिन करके तुरन्त छोड़ दिया। बिल्लीके चेहरेपर धीरे-धीरे मांदगीके चिह्न दिखाई देने लगे। दूसरे दिन वह मरण-प्राय हो गई। तब मेरे मनमें आया कि थोड़ा-सा तिरियाक-फारूक (विष उतारनेवाली एक औषध ) इसको देना चाहिए / जब उसका मुँह खोला गया तो देखा कि उसकी जीभ और तालू काला पड़ गया था। तीन दिन बुरा हाल रहा। चौथे दिन उसे कुछ सुध आई। फिर लौण्डीको ताऊनकी गाँठ निकली। उसकी जलन और पीड़ासे वह सुध भूल गई / रंग बदलकर पीला और काला हो गया। प्रचण्ड ज्वर चढ़ा। दूसरे दिन वह मर गई। इसी प्रकार सात-आठ मनुष्य उस घरमें मरे और रोगग्रस्त हुए / तब मैं उस स्थानसे निकलकर बागमें चली गई। वहाँ फिर किसीके गाँठ नहीं निकली, पर जो पहले बीमार थे वे नहीं बचे। आठ-नौ दिनमें सत्रह मनुष्य मर गये। उसने यह भी कहा कि जिनके गाँठें निकली हुई थीं, वे यदि किसीसे पानी पीने या नहानेको माँगते थे तो उसको भी यह रोग लग जाता था। अन्तको ऐसा हुआ कि मारे डरके कोई उनके पास नहीं जाता था।" २-बम्बईके भूतपूर्व कमिश्नर 'सर जेम्स केम्बले' ने 'अहमदाबाद गेजेटियर' में कुछ दिन पहले इस विषयसम्बन्धी अनेक उल्लेख किये हैं। उन्होंने लिखा है कि "ईस्वी सन् 1618 अर्थात् वि० सं० 1675 के लगभग अहमदाबादमें प्लेग फैल रहा था, जो कि आगरा-दिल्लीकी ओरसे आया था, और जिसका प्रारंभ ई० स० 1611 में पंजाबसे निश्चित होता है / जिस समय प्लेग आगरा और दिल्ली में कहर मचा रहा था, वहाँके तत्कालीन बादशाह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org