________________ 123 संवत् 1655 में अकबर बादशाह तो दक्खन फतह करनेको गये और अजमेरवा सूबा शाह सलीमको जागीर में देकर रानाको सर करनेका हुक्म दे गये / शाह कुलीचखाँ महरम और राजा मानसिंहकी नौकरी इनके पास बोली गई / बंगालेका सूत्रा जो राजाके पास था, उसे राजा अपने बड़े बेटे जगतसिंहको सोंपकर शाही खिदमतमें रहने लगे। __ शाह सलीमने अजमेर आकर अपनी फौज रानाके ऊपर भेजी और कुछ दिनों पीछे आप भी शिकार खेलते हुए, उदयपुरको गये, जिसको राना छोड़ गये थे, और सिपाहियोंको पहाड़ों में मेजकर रानाके पकड़नेकी कोशिश करने लगे। खुशामदी और स्वार्थो लोग इनके कान भरा करते थे कि बादशाह तो दक्खनके लेने में लगे हैं और वह मुल्क एकाएक हाथ आनेवाला नहीं है; और वे भी उसे वगैर लिये वापस होने के नहीं। इसलिए हजरत जो यहाँसे लौटकर आगरेके परेके आबाद और उपजाऊ परगनोंको ले लें, तो बड़े फायदेकी बात हो। बंगालेका फिसाद भी जिसकी खबरें आ रही हैं और जो वगैर गये राजा मानसिंह के मिटनेवाला नहीं है, जल्द दूर हो जायगा। यह बात राजा मानसिंहके भी मतलबकी थी, क्योंकि उन्हींने बंगालेकी रखवालीका जिम्मा ले रक्खा था, इस लिए उन्होंने भी हाँमें हाँ मिलाकर लौट चलनेकी सलाह दे दी। __ शाह सलीम इन बातोंसे राजाकी मुहीम अधूरी छोड़कर इलाहाबादको लौट गये। जब आगरेमें पहुंचे तो वहाँका किलेदार कुलीचखाँ पेशवाईको आया / उस वक्त लोगोंने बहुत कहा कि, इसको पकड़ लेनेसे आगरेका किला जो खजानेसे भरा हुआ है, सहजहीमें हाथ आता है। मगर इन्होंने कबूल न करके उसको रुखसत कर दिया और यमुनासे उतरकर इलाहाबादका रास्ता लिया। इनकी दादी हौदे में बैठकर इनको इस इरादेसे मना करनेके लिए किलेसे उतरी ही थी कि ये नावमें बैठकर जल्दीसे चल दिये और वे नाराज होकर लौट आई। सावन सुदी 3 संवत् 1657 को शाह सलीम इलाहाबाद के किले में पहुँचे और आगरेसे इधरके बहुतसे परगने लेकर उन्होंने अपने नौकरोंको जागीरमें दे दिये। बिहारका सूत्रा कुतुबुद्दीनखाँको दिया / जौनपुरकी सरकार लालाबेगको, और कालपीकी सरकार नसोम बहादुरको दी। घनसूर दोवानने तीन लाख रुपएका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org