________________ ६-चीन कुलीच खाँ यह इन्दूजानका रहनेवाला जानी कुरवानी जातिका तुर्क था। बादशाह अकबरने इसे सं० 1629 में सूरतकी किलेदारी, सं० 1635 में गुजरातकी सूबेदारी और फिर 1637 में वजारत दी। 1640 में वह गुजरात भेजा गया और 1646 में गजा तोडरमल्लके मरने पर उसे दीवान बना दिया गया, लो 265 तक रहा। इसी बीच 1658 में जौनपुर भी उसकी जागीरमें दे दिया गया। सं० 1653 में शाहजादा दानियाल इलाहाबादके सूबेमें भेजा गया, तो कुलीच खाँको उसका अतालीक (शिक्षक) बनाकर साथ रख दिया। उसकी बेटी शाहजादेको व्याही थी। __ सं० 1656 में आगरेकी और 1658 में लाहोर तथा बाबुलकी सूबेदारी उसे दी गई / 1662 में बादशाह जहाँगीरने उसे गुजरातमें बदल दिया और 1664 में लाहोर भेज दिया। इसके बाद 1669 में यह काबुल और अफगानिस्तानके बन्दोबस्त पर मुकर्रर होकर गया और वहाँ सं. 1678 में मर गया। ___ एक तो सं० 1655 में जौनपुर कुलीच खोकी जागीरमें ही था और दूसरे सं०६५३ में उसकी तैनाती भी इलाहाबादके सूबे में हो गई थी जिसके नीचे जौनपुर था। जहाँगीरके समयके मोतमित खाँके लेखोंका जो सार मिला है उससे मालूम होता है कि जौनपुरका सूबेदार नबाब कुलीच खाँ प्रजापीड़क था। उसकी शिकायत आने पर बादशाहने उसे वापिस बुलाया और यदि वह रास्तेमें ही न मर जाता तो उसे कड़ा दण्ड मिलना / अकबर और जहाँगीरने कभी किसी अत्याचारीकी रियायत नहीं की। ७-लालाबेग और नूरम तुजक जहाँगीरीकी भूमिका में जो हाल जहाँगीर बादशाहकी युवराजावस्थाका लिखा है, उससे अर्धकथानकमें लिखे हुए जौनपुर के विग्रहका पता लग जाता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org