________________ महापण्डित राहुल सांकृत्यायनने मई 1957 की सरस्वतीमें 'हेमचन्द्र विक्रमादित्य' शीर्षक एक लेख लिखा है। उसमें जौनपुरके सम्बन्धमें कुछ विशेष जानने योग्य बातें लिखी हैं, जो यहाँ दी जाती हैं " जौनपुरकी बादशाहतमें हिन्दू-मुसलमान दोनोंका बराबरीका दर्जा था / उसने वहाँकी संस्कृतिको नहीं भुलाया जिसमें वह साँस ले रही थी। भारतीय संगीतको उसने प्रश्रय दिया / अवधी भाषा और साहित्यका समर्थन किया जिसका सुबूत यह है कि अवधीके महाकवि मंझन. कुतुबन और जायसी जौनपुर दरबार के ही थे जिन्होंने मुसलमान होते हुए भी देशकी भाषा और शैलीको अपनाया। जौनपुरका व्यापार जौनपुर में जो बनारसीदासजीने जवाहिरातका व्यापार होना लिखा है, सो सही है / क्यों कि जौनपुर आगरे और पटने के बीच में बड़ा भारी शहर था, और जब वहाँ बादशाही थी, उस वक्त तो दूसरी दिल्ली बना हुआ था, और चार कोसमें बसता था। इलाहाबाद बसनेके पीछे जौनपुर उसके नीचे कर दिया गया था। आईने सकवरी में जौनपुरके 19 मुहाल लिखे हैं, परंतु अब तो वह जौनपुर पाँच ही तहसीलों का जिला रह गया है। जौनपुरकी बस्ती अकबरके समयमें कितनी थी, इसका पता जुगराफिर (भूगोल) जौनपुरसे मिलता है। उसमें लिखा है कि अकबर बादशाहने गरीबोंकी आँखोंका इलाज करनेके लिए एक हकीमको भेजा था, जो गरीबोंका मुफ्त इलाज करता था, और अमीरोंको मोल लेकर दवा देता था / तो भी हजार पन्द्रह सौ रुपए रोजकी उसकी आमदनी हो जाती थी / एक दिन उसके गुमाश्तोंने जब उससे कहा कि आज तो पाँचसौका ही सुरमा बिका है, तब उसने एक बड़ी माह भरी और कहा--हाय ! जौनपुर वीरान ( उजड़ ) हो गया। फिर वह उसी दिन आगरेको चला गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org