________________ ४-श्रीमाल जाति श्रीमाल जातिकी उत्पत्ति श्रीमाल नामक स्थानसे बतलाई जाती है। अहमदाबादसे अजमेर जानेवाली रेलवे लाइनके पालनपुर और आबू रोड स्टेशनसे लगभग 50 मोल गुजरात और मारवाड़की सरहदपर प्राचीन 'श्रीमाल'के खण्डहर पड़े हुए हैं और अब उक्त स्थान ‘भिन्नमाल' कहलाता है। श्रीमालपुराणमें लिखा है कि सतयुगमें विष्णुपत्नी लक्ष्मीदेवीने इसकी स्थापना की थी। सतयुगमें इसका नाम पुष्पमाल, तामें रत्नमाल, द्वापर में श्रीमाल और कलियुगमें भिनमाल रहा। विमलप्रबन्ध और विमलचरितके अनुसार द्वापरयुगके अन्तमें श्रीमाल नगरमें श्रीमाल जातिकी स्थापना हुई और श्रीदेवी इस जातिकी कुल देवी मानी गई। एक श्वेताम्बर जैनकथाके अनुसार श्रीमल्ल राजाके नामसे उसके नगरका नाम श्रीमाल पड़ा था। इसी तरह एक और कथाके अनुसार गौतम स्वामीने उस राजाको जैन बनाकर उसके नामसे श्रीमाल कुल स्थापित किया / लक्ष्मी श्रोमल राजाकी पुत्री थी और वह आबूके परमार राजाको न्याही गई थी। परन्तु ये सब पौराणिक कहानियाँ हैं, इनमें कुछ अधिक तथ्य नहीं मालूम होता। __ बनारसीदासजी इनमेंसे किसी भी कहानीकी कोई चर्चा नहीं करते और वे कहते हैं कि रोहतक के निकटके बिहोली गाँवके राजवंशी राजपूत गुरुके उपदेशसे जैन हो गये, जो णमोकार मन्त्रकी माला पहिनकर श्रीमाल कहलाये और बिहोलीके राजाने उनका गोत्र बिहोलिया ठहराया। इसमें इतना तो ठीक मालूम होता है कि बिहोली गाँवके कारण इनका गोत बिहोलिया हुआ / जैनोंके अधिकांश गोत्रोके नाम स्थानोंके कारण ही रखे गये हैं, परन्तु समग्र श्रीमाल जातिके उत्पत्तिस्थानके विषय में वे कुछ नहीं कहते ! अधिक संभव यही है कि मिनमाळ या श्रीमालसे श्रीमाल जाति निकली हो। हुनसंगके समय में यह नगर गुर्जर देशकी राजषानी था / भीमाल जातिकी जो गोत्रसूनी मिलती है, उसमें 125 के करीब गोत्रोके नाम हैं, जिनमेंसे अर्धकथानकमें कूकड़ी, खोबरा, चिनालिया, ढोर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org