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काफिला इटावेके पास पहुँचा। वहाँ पहुँचते ही इतना जोरसे पानी गिरा कि सारा काफिला बचने के लिए घरों की खोज में भागा । बेचारे बनारसीदास भी चादर लेकर भागते हुए सराय पहुँचे, पर वहाँ दो उमराव ठहरे हुए थे। बाजार में तिल रखनेको जगह न थी । दौड़ते दौड़ते पैर रूई हो गए पर किसीने बैठने तक को न कहा । पैर कींचसे सन गए और ऊपरसे मूसलाधार बरसात, साथ ही साथ अगहनकी ठंडी हवा । एक स्त्रीने उनसे बैठनेको कहा तो उसका पति बाँस लेकर उठा ! रोते झींकते वे एक चौकीदारकी झोंपड़ी में पहुँचे। उसने इनामकी लालचसे उन्हें और उनके साथियोंकी ठहरनेकी अनुमति दे दी और वे सब कपड़े सुखाकर पयालपर सो गए, पर बदकिस्मतीने साथ न छोड़ा । रातमें एक जोरावर आदमी आ धमका और उन्हें चाबुककी मारका डर दिखला कर भगा देना चाहा । बनारसीदास हड़बड़ाकर भगे तब उसे दया आगई । उसने उन्हें एक टाट सोनेको दिया और खुद उसपर खाट डाल कर पड़ रहा । किसी तरह ठिठुरते हुए रात बीती और सबेरे काफिला आगरेकी ओर चल पड़ा ।
बनारसीदास आगरे पहुँ कर वहाँ मोतीकटर में ठहर गए। बाद में वे अपने बहनोई बंदीदास के यहाँ जा टिके और माल उधार देनेवालेकी कोठीमें रख दिया । कुछ दिनों बाद उन्होंने अपना डेरा अलग कर लिया और वहीं कपड़ेकी गठरियाँ रख लीं और नित्य नखासे आने जाने लगे । अध्यातमी व्यापारीके भाग्य में नुकसान ही बदां था, पर घी तेल बेचकर मुनाफेके चार रुपए हाथ लगे । इस तरहसे सब चीजें बेंच खींचकर उन्होंने हुंडीको चुकता किया। जवाहरात के व्यापार में तो और बुरी ठहरी। कुछ चीजें बिना जाने सूझे साधुकुसाधुओंको दे दीं, कुछ गिरों धर कर रकम खा गए। एक बार खुला जवाहर टेंटसे गिरकर खो गया और कुछ पैजामें में बँधे जवाहरात चूहे काट ले गए। एक जोड़ी जड़ाऊ पहुँची एक ग्राहकके हाथ बेची तो उसने दिवाला निकाल दिया और एक अँगूठी गिरकर खो गई । इन मुसीबतों के बीच बनारसीदास बीमार भी पड़ गए । पिताने सत्र समाचार सुनकर बड़ी हाय तोबा मचाई। इधर बनारसीदास सब खो-खाकर रात में मधुमालती और मृगावती बाँचने लगे । श्रोताओं में एक कचौड़ीवाला था, और उससे उधार पर कचौड़ियाँ लेकर उन्होंने छह महिने गुजार दिए । दमाद की दुर्दशा देखकर उनके ससुर समझाबुझाकर अपने घर ले गए । ससुर के घर रहते हुए वे धरमदासके, जो मौजी और उड़ाऊ जीव थे, साझीदार बने, पर
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