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________________ सवार तथार हो गए और चारों ओर चौकीदार रखवाली करने लगे और कंगूरों पर तोपें चढ़ा दी गई। गढ़में अन्न-वस्त्र, जल, जिरहबख्तर, जीन, बंदूकें, हथियार तथा गोला बारूद इकट्ठा कर लिए गए । समरकी तैयारी देख प्रजा व्याकुल हो उठी और लोग भागने लगे। बेचारे जौहरी एक जगह इकट्ठा हुए और किलीचके पास पहुँचे, पर उससे ठाढ़स न पाकर सब भागे। खरगसेन भी जंगलमें छिपे रहे और छह महीने बाद जब मामला सुधरा तो जौनपुर वापिस आए। . . अब बनारसीदास चौदह सालके हो चुके थे तथा नाममाला, अनेकार्थ, ज्योतिष और अलंकार के साथ साथ उन्होंने लघुकोकशास्त्र भी पढ़ा। कोकशास्त्र पढ़नेसे नतीजा को होना था सो हुआ। लगे मानिकोंकी चोरी करने और आशिकी इतनी बढ़ी कि रोजगार एक तरफ धरा रह गया। बुरेका बुरा फल निकला । उन्हें उपदंश हो गया और वे अपनी सास और स्त्रीकी सेवा और एक नापितकी दवासे किसी तरह अच्छे हए, पर आशिको और पढ़नेके बीच उनका जीवन-क्रम चलता रहा। सन् १६०४ में वरगसेन यात्राको गये और बनारसीदासकी निरंकुशता बढ़ गई । १६०५ में जौनपुरमें अकबरकी मृत्यु का समाचार पहुँचा, पर फिः गड़बड़ी मच गई । लोगोंने अपने घरोंके दरवाजे बन्द कर दिए; सराफोंने बाजारमें बैठना छोड़ दिया, मालमता छिपा दिया, घरोंमें शस्त्र इकडे कर लि. और मोटे वस्त्र पहरकर लोग दारेद्र बन गए । पर यह गड़बड़ी जल्दी ही शान्त हो गई और व्यापारी फिर जौनपुर लौटकर आनंद-मंगल मनाने लगे। इधर बनारसीदासका मन बदला। उन्होंने अपने काव्यको झूठा मानकर गोमतीके हवाले कर दिया और नेम-धरम मानते हुए पूरे जैनी बन गए। इस तरह दुःखमुखमें तीन साल बीत गए । अपने पुतके अच्छे लन्छन देखकर खरगसेन हग्व उठे और सन् १६१० में उन्होंने खुले और जड़ाऊ जवाहरात इकट्ठा करक कागजम उनके भाव लिख। साथ ही साथ बीस मन धा, दो कुप तेल और जौनपुरी कपड़ा इकट्ठा कर लिया। मालमें २०० रु. लगे जिसमें कुछ घरकी रकम थ: और कुछ उधारको । यह सब मालमता वारसीदासके सुपुर्द करके उनके पिताने व्यापारसे सारे कुटुम्बके पालनपोषणकी आशा प्रकट की । बेचारे बनारसीदासने जवाहरात तो टेंटमें खोंसे और सारा माल गाड़ियोंपर लादा । बहुत-सी और गाड़ियाँ साथ हो ली और प्रतिदिन पाँच कोसकी यात्रा करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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