________________ 115 आनन्दघन आनन्दघन, घनानन्द, आनन्द नामके अनेक कवि हो गये हैं, उनमेंसे एक अध्यातमी कवि बनारसीदासके समयमें हुए हैं / स्व० मोतीचन्दजी कापडियाने अनुमान किया है कि उनका जन्मकाल सं० 1660 और स्वर्गवास 1730 के लगभग होना चाहिएं। क्यों कि उपाध्याय यशोविषयका देहोत्सर्ग वि. सं० 1743 में डभोई (गुजरात) में हुआ था और उनका आनन्दधनसे साक्षात्कार हुआ यो / परन्तु इस साक्षात्कारका अभी तक कोई स्पष्ट और विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिला है / उपाध्यायजीका लिखा हुआ एक अष्टक है जिसमें कई जगह 'आनन्दघन' नाम प्रयुक्त हुआ है और उसी परसे उक्त साक्षात्कारकी कल्पना की गई है / उक्त अष्टकका पहला पद यह है मारग चलत चलतगात आनंदघन प्यारे। ताको सरूप भूप तिहुँ लोकतै न्यारो, बरखत मुखपर नूर / सुमति सखीके संग नित नित दौरत, कबहुं न होतहि दूर / 'जस विजय ' कहै सुनो हो आनंदघन, हम तुम मिले हजूर // 1 // इसमें आनन्दघन शब्द स्पष्ट ही चिदानन्दघन निजात्माको लक्ष्य करके है, जो सुमति या सम्यक्ज्ञान के साथ निरन्तर रहता है, कभी दूर नहीं होता। दूसरे पदमें 'सुमति सस्ती और नवल आनंदघन मिल रहे गंग तरंग' कहा है। तीसरे पदमें कहा है आनंद कोउ न पावै, जो पावै सोई आनंदघन ध्यावै / आनंद कौन रूप कौन आनंदघन, आनंद गुण कौन लखावै / सहज संतोष आनंद गुण प्रगटत, सब दुविधा मिट जावै। 'जस' कहै सोई आनंदघन पावत, अंतर जोत जगावै / १-'श्रीआनन्दघनजीना पदों' की गुजराती प्रस्तावना ।-महावीर जैन विद्यालय प्रकाशन / २-डभोईमें यशोविजयजीकी चरणपादुकायें सं० 1743 में स्थापित की गई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org