________________ सर्परूपाकार श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसिंहरिपट्टे श्रीजिनचन्दसरिणा श्रीआगरानगरे / " साह निहालचन्द हीरानन्दके पुत्र थे। __ जगतसेठके पूर्वज हीरानन्दके पौत्र और माणिकचन्दके पुत्र फतेहचन्दका बखान करनेवाले कुछ पद्य मुनि कान्तिसागरने अपने एक लेखेमें प्रकाशित किये हैं जिनके रचयिता निहाल नामके एक यति थे, जो बरसों एक साथ रहे थे और उन्होंने पौष वदी 13 सं. 1798 को मकसूदाबादमें ये लिखे थे। इनमे अनुसार राजा माणिकचन्दने मुर्शिदाबाद (बंगाल) में अपनी कोठी स्थापित की और फर्रुखसियर बादशाहने उन्हें सेठका पद दिया। उनके इन्द्रके समान पुत्र फतेहचन्द दिल्ली गये और तब उन्हें दिल्लीपतिने जगतसेठका खिताब दिया। १-अर्ध-कथानकके पिछले संस्करणमें हमने हीरानन्द मुकीमको सुप्रसिद्ध जगतसेठका वंशज लिखा था, जो भूल थी। जगतसेठकी पदवी तो सेठ माणिकचन्दके पुत्र फतेहचन्दको दिल्लीके बादशाहने दी थी और वे हीरानन्दके बाद हुए हैं। इस तरह ये हीरानन्द जगतसेठके पूर्वज हीरानन्द नहीं, किन्तु एक दूसरे ही धनी सेठ थे। 2- देखो, विशालभारत, मार्च 1947 3 देस बंगालो उत्तम देस, आए माणिकचन्द नरेस / नाम नगर मकसूदाबाद, करि कोठी कीनो आबाद // 9 राजा प्रजा और उमराव, फोजदार सूबा नव्वाब / सहुको माने हुकुम प्रमान, दिल्लीपत दै अतिसन्मान / / 10 पातस्याह श्री फर्रुकसाह, सेठ पदस्थ दियौ उच्छाह / माणिकचंद सेठनै नाम, फिरी दुहाई ठामो ठाम // 11 देस बंगालाकेरो धणी, दिन दिन संतति संपति घणी / जाकै पुत्र सुरिंद समान, प्रगटे फतेहचंद सुग्यान // 12 दिली जाइ दिल्लीपत मेट, नाम किताब दियो जगसेठ / जगतसेठ जगती अवतार... // 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org