________________ 113 रूपके अनूप आछे अंबलक आभरन, देखे न सुने न कोऊ ऐसे राणा रावके / बावन मतंग माते नंदजू उचित (1) कीने, ज़रीसेती जरि दीने अंकुस जड़ावके / दानके विधानको बखान हौं कहाँ लौं करो, बीरनिमें हीरा देत हीरानंद जौहरी / / xxx पाइए न जेते जवाहर जगमांझ ढुंदे, जेतो ढेर जौहरी जवाहरको लायौ है / कसबी कुमांच मखमल जरवाफ साफ, . झरोखालौं गृह्लग मगमैं बिछयौ है / जंपत ' जगन' विधि आन न बरनि जात, जहाँगीर आए नंद आनंद समायौ है / करसी 1) छिटकि कहूँ कहूँ उमराउनकी पेसैकसी पेखतें पसीना तन आयौ है / / आगरेके श्वेताम्बर जैनमंदिरके सं० 1688 के प्रतिमालेख (नं. 1454) के 'राजद्वारशोभनीक सोनी श्री हीरानन्द श्री जहाँगीरस्य... गृहे ' पदसे भी इस बातका संकेत मिलता है कि हीरानन्दने जहाँगीरको अपने घरपर आमंत्रित किया था। एक और प्रतिमालेख (नं. 1451 ) इस प्रकार है-“ / ॐ सिद्धिः // संवत् 1668 ज्येष्ट सुदि 15 तिथौ गुरुवासरे अनुराधानक्षत्रे ओसवालज्ञातीय अरडकसोनीगोत्र साह पूनासंताने सा० कान्हड भा; भामनीबहू पुत्र सा• हीरानन्देन बिम्बं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिन धनसूरसंताने श्रीलब्धिवर्द्धनशिष्येन / " एक और प्रतिमालेख (नं. 1457) इस प्रकार है-" सं० 1668 ज्येष्ट सुदि 15 गुरौ ओसवालशातीयगृगार अरडकसोनीगोत्रे सा• हीरानन्दपुत्र सा. निहालचन्देन श्रीपार्श्वनाथकारिता: --चितकबरा / 2 बढ़िया मलमल ! 3-4 जरीके कपड़े / 6 भेट उपहार / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org