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________________ सम्मेद-शिखर चैत्यपरिपाटीमें भी किया है और श्री अगरचन्दजी नाहटाने उसे हाल ही प्रकाशित किया है। इसके अनुसार खरतर गच्छका यात्रासंघ माघ सुदी 13 सं० 1660 को आगरेसे चला था और शाहजादपुर होता हुआ प्रयाग पहुँचा था / साह हीरानन्द सलीमशाहको प्रसन्नकर उनकी आज्ञासे प्रयागसे बनारस आकर संघमें शामिल हुए थे, जब कि अर्धकथानकके अनुसार चैत्र सुदी 2 को हीरानन्दने प्रयागसे संघ निकाला था / इस चैत्यपरिपाटीसे भी मालूम होता है कि हीरानन्द शाह सलीमके कृपापात्र थे और बहुत बड़े धनी थे। उनके साथ अनेक हाथी, घोड़े, पैदल और तुपकदार थे। उनकी ओरसे प्रतिदिन संघका भोज होता था और सबको सन्तुष्ट किया जाता था। सलीमके गद्दीनशीन होनेपर इन्होंने संवत् 1667 में उसे अपने घर आमत्रित करके बहुत बड़ा नजराना दिया था जिसका आलंकारिक वर्णन ' जगन' नामक कविने किया है |--- संवत् सोलह सतसठे, साका अति कीया / मेहमानी पातिसाहदी, करके जस लीया // चुनि चुनि चोखी चुनी, परम पुराने पना, कुन्दनकों देने करि लाए घन तावके / लाल लाल लाल लागे कुनब (1) बदखशा विविध बरन बने बहुत बनावके / / १-अनेकान्त, वर्ष 14, अंक 10 / 2 - संघ निकालने के समयमें यह अन्तर क्यों पड़ता है, कुछ समझमें नहीं आया। ३---यह कविता श्री मणिलाल बकोरभाई व्यासने ' श्रीमालीओनो ज्ञातिभेद, नामक गुजराती पुस्तकमें दी है, जो बहुत ही अशुद्ध है / यहाँ हमने उसके कुछ समझमें आने योग्य अंश ही शुद्ध करके उद्धृत किये हैं। ४-देश, जहाँके लाल (रत्न) बहुत प्रसिद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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