________________ 11 दयासागर मुनि चूंप बताई / बद्धके मन साची आई। जिनंददेवकै साचे बैन, दयासागर ऊतारै जैन // 2 दयासागर साचो जती, समझै निज नयसंग। अध्यातम वाचै सदा, तजौ करमको रंग // 3 पाहिराज साहिको सुतन, नवलख गोत्र उदार / आतमग्यानी दास है, बर्धमान सुखकार // 8 धरमदास आतमधरम, साचौ जगभै दीठ / और धरम भरमी गिणे, आत्म अमीसम सीठ // 10 मिह मीठे जिनवचन, और कडू सहु मान / उपादेय निज आतमा, और हेय तू जान / / 11 सुखानंद निजपद कयौ, अविनासी सुखकार / अनुभव कीजै पदतणौ, पुदगल सगली छार // 12 मुलतान शहर अध्यात्मी या बनारसीदासजीके अनुयायियोंका मुख्य स्थान रहा है / वहाँके ओसवाल श्रीमाल इसी मतके अनुयायी रहे हैं / वधमान वचनिकासे इस बातकी पुष्टि होती है / इसमें धरमदास, भणसाली मिठू, सुखानन्द आदिका उल्लेख है। श्वेताम्बर साधु दयासागरको भी अध्यात्मी बताया है। इस वचनिकाके लिपिकर्ता पं० ज्ञानवर्धन मुनि भी श्वेताम्बर थे। श्री अगरचन्दजी नाहटाके अनुसार खरतर गच्छके जिनसमुद्रसूरिने सं० 1711 में गणधरगोत्रीय नेमिदास श्रावकके आग्रहसे आतम-करणीसंवाद ग्रंथ रचा है। खरतरगच्छके सुमतिरंगने सं० 1722 में मुलतानके श्रावक चाहड़मल्ल, नवलखा वर्धमान आदिके आग्रहसे प्रबोधचिन्तामणि चौपाई और योगशास्त्र चौपाईकी रचना की है। पिछले ग्रन्थमें चाहड़, करमचन्द, जेठमल, ऋषमदास, पृथ्वीराज, शिवराजका उल्लेख किया है / ये सब अध्यातमी थे जिनवाणी जगतारक जान, चाहड़ ऋषभदास वर्धमान / समझदार श्रावक मुलतानी, करई सदा मिल अकथ कहानी / / दयाकुशलके शिष्य धर्म मन्दिरने 1740 में दयादीपिका चौपाई, 1741 मे प्रबोधचिन्तामणि, मोहविवेकरास, 1742 में परमात्मप्रकाश चौपाई (योगीन्दुदेव) 1 यह ग्रन्थ जसलमेरके डूंगरसी भंडार में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org