________________ नाथ हिम भूधरतें निकसि गनेस चित्त, भूपरि विथारी सिबसागर (लौं) धाई है। परमतवाद मरजाद कूल उनमूलि, अनुकूल मारग सुभाष ढरि आई है / बुध हंस सरै पापमलको विधंस करै, सरबस सुमतिनिकासि बरदाई है। सपत अभंग भंग उठे हैं तरंग जाम, ऐसी बानी गंग सरबंग अंग गाई है / ऊपर लिखा जा चुका है कि रूपचन्द इनके गुरु थे। पं० कस्तूरचन्दजीने अभी हाल ही पाण्डे हेमराजके 'उपदेश दोहाशतक' का परिचय दिया है जिसमें 101 सुभाषित दोहे हैं और जिसकी रचना कार्तिक सुदी 5 सं० 1725 को समाप्त हुई है। दोहा-शतकसे यह बात विशेष मालूम हुई कि उनका जन्म सांगानेर में हुआ था और यह दोहा शतक काम गढ़ (कामां, भरतपुर) में कीर्तिसिंह नरेशके समयमें बनाया गया / शतकके कुछ दोहे देखिए ठौर ठौर सोधत फिरत, काहे अंध अवेब / तेरे ही घटमैं बसें, सदा निरंजन देव // 25 // मिलैं लोग बाजा बजे, पान गुलाल फुलेल / जनम मरन अरु ब्याहमें, है समान सौ खेल // 36 // पाण्डवपुराण (भारत-भाषा सं० 1754 ) के कर्ता कवि बुलाखीदासकी माता जैनुल दे' या 'जैनी' बड़ी विदुषी थीं और वे पं० हेमराजकी पुत्री थीं। बुलाबीदासके अनुसार हेमराज गर्गगोत्री अग्रवाल थे। वर्द्धमान नवलखा मुलतानके रहनेवाले पाहिराज साहुके पुत्र वर्द्धमान या बद्भूरचित 'वर्द्धमानवचनिका' की प्रति श्री अगरचन्दनी नाहटाकी कृपासे प्राप्त हुई। ये ओसवाल थे और नवलखा इनका गोत्र था। माघ सुदी पंचमी सं० 1746 को बद्धमानवचनिकाकी रचना हुई और चैत्र वदी 1 संवत् 1747 को विशालोपाध्याय गणिके शिष्य ज्ञानवर्धन मुनिने मुलतान में ही इसकी प्रतिलिपि की। - इसके पत्र 20 में नीचे लिखे दोहे हैं - १-अनेकान्त वर्ष 14 अंक 10 में देखो ‘हिन्दी के नये साहित्यकी खोज'। 2- हेमराज मंडित बसै, तिसी आगरे ठाइ / गरगगोत गुन आगरौ, सब पूजै जिस पांइ // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org