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________________ पं० हीरानन्दजीने उक्त जगजीवनजीके कहनेसे ही वि० सं० 1711 में पंचास्तिकायकी रचना की थी। पांडे हेमराज कँवरपालजीका परिचय देते हुए ऊपर लिखा जा चुका है कि उनकी प्रेरणासे हेमराजजीने 'सितपट चौरासी बोल' और प्रवचनसारकी बालबोधटीका लिखी थी, जिसका रचनाकाल 1709 है / इसके बाद उन्होंने परमात्मप्रकाशकी भाषाटीका संवत् 1716 में, गोम्मटस.र कर्मकाण्डकी भा० टी० संवत 1717 में, पंचास्तिकायकी 1721 में और नयचक्रकी टीका संवत् 1726 में लिखी है। मानतुंगके भक्तामर स्तोत्रका एक सुन्दर पद्यानुवाद भी इनका किया हुआ है। राजस्थानके जैनग्रन्थभंडारोंकी सूचीपरसे हम यह नामावली दे रहे हैं, संभव है, इनके सिवाय और भी उनकी रचनाएँ हों / इनसे मालूम होता है कि अपने समयके ये भी बड़े विद्वान् थे और कुंवरपाल आदि अध्यात्मियोंसे इनका विशेष सम्पर्क था। 'चौरासी बोल' से मालूम होता है कि इनकी कविता भी सुन्दर होती थी --- सुनयपोष हतदोष, मोषमुख सिवपददायक, गुनमनिकोष सुघोष, रोषहर तोषविधायक / एक अनंत सरूप संतबंदित अभिनंदित, निज सुभाव पर भाव भावि भासेइ अमंदित / अविदितचरित्र विलसित अमित, सर्व मिलित अविलिप्त तन, अविचलित कलित निजरस ललित, जय जिन दलित (सु) कलिल घन ||1 १-पं० कस्तूरचन्दजी कासलीवाल लिखते हैं कि पं० हेमराजकी 12 रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं / ऊपर लिखी छह रचनाओंके सिवाय नयचक्र भाषा, प्रवचनसार पद्यानुवाद, हितोपदेश बावनी, दोहाशतक, जीवसमास और हैं / २-पं० परमानन्दजी शास्त्री ने देहलीसे 'चौरासी बोल' नामको एक और पुस्तकका आद्यन्त अंश उतार कर भेजा है जिसके कवि जगरूप हैं और जिसे उन्होंने जयसिंहपुरा (नई दिल्ली) में संवत् 1811 में बनाकर समाप्त किया था। इसमें भी श्वेताम्बर सम्प्रदायकी मतभेदसम्बन्धीकी 84 बातोंका खण्डन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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