________________ बनारसीदासजूके बचनकी बात चली, ___ याकी कथा ऐसी ग्याताग्यानमनलावनी // गुनवंत पुरुषके गुन कीरतन कीजै, पीतांवर प्रीति करि सज्जन सुहावनी / वही अधिकार आयो ऊंघते बिछौना पायौ, हुकमप्रसादतै भई है ग्यानबावनी // 50 सोलहसौ छियासिए संवत कुंआरमास, पच्छ उजियारौ चंद्र चढ़िवेकौ चाव है। बिजै दसौं दिन आयौ सुद्ध परकास पायौ, उत्तरा असाढ़ उडुगन यहै दाव है / बानारसीदास गुनयोग है सुकल बाना, पौरष प्रधान गिरि करन कहाव है / एक तौ अरथ सुभ मुहूरत बरनाव, दूसरे अरथ यामैं दूजौ बरनाव है // 51 जगजीवन यद्यपि स्वयं पं. बनारसीदासजीने अपनी रचनाओंमें कहीं इनका उल्लेख नहीं किया है परन्तु ये भी उनके अनुयायी थे। वि० सं० 1701 में इन्होंने बनारसीदासजीकी समस्त रचनाओंको एकत्र किया और उसे 'बनारसीविलास' नाम दिया। ये आगरेके रहनेवाले गर्गगोत्री अग्रवाल थे / इनके पिताका नाम संघवी अभयराज और माताका मोहन दे था। अवश्य ही ये बनारसीदासके साथियों और अनुयायियोंमें थे। "समै जोग पाइ जगजीवन विख्यात भयौ, ग्यानिनकी मंडली में जिसको बिकास है / ' पं० हीरानंदजीने अपने पंचास्तिकाय पद्यानुवादमें उनके पिता संघवी अभयराज और माता मोहनदेका उल्लेख करने के पश्चात् कहा है कि जगजीवन जाफर खाँ नामक किसी उमरावके दीवान थे ताको पूत भयौ जगनामी, जगजीवन जिनमारगगामी / जाफरखाँ के काज सँवारे, भया दिवान उजागर सारै / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org