SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 105 पीताम्बर बनारसीविलासमें ‘ग्यान बावनी' नामकी एक कविता संग्रह की गई है, जिसमें 52 इकतीसा सवैया हैं। इसके प्रत्येक सवैयामें 'बनारसीदास' नाम आया है और इसलिए उसे अन्तमें 'बनारसीनामांकित ग्यानबावनी' लिखा है। इसके सिवाय प्रत्येक सवैयाका आदि अक्षर वर्णानुक्रमसे रक्खा है। प्रारंभके पाँच पद्योंके आदि अक्षर 'ओं न मः सि धं' और आगेके 'अ आ इ ई' आदि हैं / कविता बहुत गूढ़ है और उसमें अध्यात्म शैलीसे बनारसीके गुणोंका कीर्तन किया गया है / इसके कर्ताका नाम पीताम्बर है और यह कुँआर सुदी 10 सं० 1686 को निर्मित हुई है। आगरेमें कपूरचन्द साहुके मंदिरमें सभा जुड़ी हुई थी जिसमें कँवरपाल आदि भी थे। उसी समय बनारसीदासजीके बचनोंकी चर्चा चली और तब सबके 'हुकम' से पीताम्बरने ग्यानबावनी तैयार की। 'ग्यानबावनी' के सिवाय कविकी और कोई रचना नहीं मिली और न उनके विषयमें और कुछ ज्ञात हुआ। 'आगरे नगर ताहि भेटे सुख पायौ है " पदसे ऐसा जान पड़ता है कि वे कहीं बाहरसे आये थे और आगरेमें बनारसीदाससे उनकी भेंट हुई थी। उस समय बनारसीदासकी बहुत ख्याति हो गई थी और सारी खलक उनका बखान करती थी। सकबंधी सांचौ सिरीमाल जिनदास सुन्यौ, ताके बंत मूलदास बिरद बढ़ायौ है / ताके बंस छितिम प्रगट भयौ खरगसेन, बनारसीदास ताके अवतार आयौ है। बी होलिया गोत गरवत्तन उदोत भयौ, आगरे नगर ताहि भेटे सुख पायी है। बानारसी बानारसी खलक बखान करें ___ ताकौ बंस नाम ठाम गाम गुन गायौ है / 45 खुसी हेकै मंदिर कपूरचन्द साहु बैठे, __ बैठे कौरपाल सभ। जुरी मनभावनी / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy