________________ 104 रोग ही सोग वियोगका, सबला संकटा / दान दया दिलमै धरो, दुख जाइ दहट्टा। धरम करौ कहै धरमसी, सुख होइ सुलट्टा // 7 इसी ढंगकी 'मोक्षपैड़ी' नामकी रचना बनारसीदासकी भी है, जो बनारसीविलासमें संग्रहीत है। वर्धमान-वचनिकामें भी सुखानन्द, भणसाली मीटू, नेमिदास आदिकी अध्यातम सैलीमें एक धरमदासका नाम आता है / नरोत्तमदास और थानमल / ये दोनों बनारसीदासके घनिष्ठ मित्रोंमें थे। 'नाममाला' की रचना उन्होंने इन दोनोंकी प्रेरणासे की थी / राग बरवा (बनारसीविलास ) भी दोनोंके निमित्तसे रचा थो। नरोत्तम बेणीदास खोबराके पुत्र थे। इनकी प्रशंसामें उन्होंने एक सुन्दर कविता लिखी थी जिसे वे भाटकी तरह रात दिन पढ़ते थे / 'शान्तिनाथ जिनस्तुति ' (बनारसीविलास ) में भी उन्होंने दो जगह नरोत्तमका नाम दिया है। चन्द्रमान और उदयकरण ये भी उनके ऐसे मित्र थे जिनके साथ वे धींगामस्ती करते और फिर अध्यात्मज्ञानकी बातें / अपनी ज्ञानपचीसी (बनारसीविलास ) उन्होंने उदयकरणके लिए लिखी है / इनके विषयमें और अधिक कुछ न मालूम हो सका / १-मित्र नरोत्तम थान, परम विचच्छन धर्मनिधि / तासु बचन परवान, कियौ निबंध विचार मनि // 280 // २-उधवा गाइ सुनाएहु, चेतन चेत / कहत बनारसि, थान नरोत्तम हेत // ३--अर्धकथानकका 486 वाँ पद्य / ४----रीझि नरोत्तमदासकौ, कीनौ एक कवित्त / पढ़े रैनदिन भाट सौ, घर बजार जित कित्त // 485 // 5 --सांति जिनेस नरोत्तमको प्रभु / मिलिया तुझ कंत नरोत्तमको प्रभु // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org