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________________ धरमदास बनारसीदासके पाँच साथियों में एक घरमदास भी थे और ये उक्त कुँअरपालके चचेरे भाई ही जान पड़ते हैं। ये जसासाहुके पुत्र थे / अर्धकथानक (353) के अनुसार ये कुसंगतिमें पड़ गये थे, नशा करते थे और इनके साथ बनारसीदासने साझेमें व्यापार किया था। पूर्वोक्त दूसरे गुटकेमें इनकी 'गुरुशिष्यकथनी' नामकी एक कविता मिली है, जो यहाँ दी जा रही है इण संसार समुद्रको, ताकै पैं तथा / / सुगुरु कहै सुणि प्राणिया, तूं घरजे ध्रम बट्टा // पूरब पुन्य प्रमाण ते, मानव भव खट्टा / हिव अहि लौ हारे मतां, भाजे भव भट्टा। लालच मैं लागौ रवे, करि कूड़ कपट्टा // 2 उलझेगौ तूं आपसू, ज्यूं जोगी जट्टा। पाचिस पाप संताप मैं, ज्यूं भौ भरभट्टा / भमसी तू भव नव नवा, नाचे ज्यू तट्टा / / ऐमिंदर ऐ मालिया, ऐ ऊँचा अट्टा // 3 है वर गै वर हींसता, गो महिषी थट्टा / जाल दुलीचा व खा, पल्लिंगा सुघट्टा // माणिक मोती मुंद्रडा, परबालं प्रगट्टा / आइ मिल्या है एकठा, जैसा थलवट्टा // 4 लोभै ललचाणौ थको, मत लागि लपट्टा / काल तकै सिर ऊपरै, करिसी चटपट्टा / जे जासी इक पलकमैं, ज्यूं बाउल घट्टा / राहगीर संध्या सम, सोवै इकहट्टा // 5 . दिन ऊगौ निज कारिजें, जायै दहबट्टा / त्यूं ही कुटुंब सबै मिल्यौ, मन जाणि उलट्टा // एहिज तोकू काढिसी, करि वे सपलट्टा / साथ जलेंगे कप्पमें, दुई च्यार लकुट्टा // 6 स्वारथको संसार है, विण स्वारथ खट्टा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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