________________ उनकी भी कई रचनाये हैं। दूसरा गुटका उनके लिए अन्य लेखकों द्वारा लिखा हुआ है और उसकी कई रचनाओं के नीचे लिखा है---" श्री जैसलमेरुमध्ये पुण्य. प्रभावक सा कुअरजी पठनार्थ " " लिखितं श्री जैसलमेरुनगरे सुश्रावक सा. कुवरजी वाच्यमानः चिरंजीयादिति श्रेयः।” इस गुटकेमें कुँअरपालकी भी 'समकितबत्तीसी' आदि कई रचनाएँ हैं / समकितबतीसीमें 33 पद्य हैं। क से लगाकर ह तकके एक एक अक्षरसे प्रारंभ होनेवाले प्रत्येक पद्यकी अन्तिम पंक्तिमें 'कँवरपाल' नाम आता है। 31-33 वें पद्योंमें कविने अपना परिचय और रचनाकाल दिया है-- खितमधि ओसवाल अति उत्तम, चोरोडिया बिरद बहु दीजइ / गौडीदास अंस गरवत्तन, अमरसीह तसु नंद कहीजइ // पुरि-पुरि कंवरपाल जस प्रगटयौ, बहु विध तास बंस बरणिजइ / धरमदास जसकंवर सदा धनि, बडसाखा विसतर जिम कीजइ // 31 सुद्ध एक आगइ छक उत्तिम, अष्ट करम भंजन दल आगर / सत्ता सुद्ध भई जा फागुनि, बोधबीज उज्जलपद नागर // तब रेवइ नक्षत्र तीरथफल, सुनि हइ ग्यान जिके सुखसागर / ए संवत् वाइक अति सुंदर, कंवरपाल समझइ नर नागर / / 32 हुऔ उछाह सुजस आतम सुनि, उत्तम जिके परम रस भिन्नै / ज्यउं सुरही तिण चरहि दूध हुइ, ग्याता तेरह प्रन गुन गिन्नै // निजबुधि सार विचारि अध्यातम, कवित बतीस भेंट कवि किन्न / कंवरपाल अमरेसतनूभव, अतिहितचित आदर कर लिन्नै / / 33 इससे मालूम होता है कि ओसवाल वंशके चोरडिया गोत्रीय गौड़ीदासके दो पुत्र थे, बड़े अमरसिंह या अमरसी और छोटे जसू / जसूके पुत्र धरमदास या धरमसी थे और अमरसीके कँवरपाल | कँवरपालका नगर नगरमें जस फैल गया और उन्होंने संवत् 1687 में उक्त समकितबत्तीसीकी रचना की। अधकथानकमें लिखा है कि जसू और अमरसी भाई-भाई थे और छोटे भाईके पुत्र ( लघुबन्धवपूत) धरमदासके साझेमें बनारसीदासने जवाहरातका व्यापार किया था। 1--- श्री अगरचन्दजी नाहटा 'सत्ता' पदस संवत् 1681 अर्थ करते हैं, 1687 संवत् नहीं। / 2- देखो, अर्धकथानक पद्य 352, 53, 54 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org