________________ 100 मतको धारण किया और वे उनके अनुयायियोंमें गुरुके समान सर्वमान्य हो गये। पर इधर उनके विषय में कुछ और प्रकाश पड़ा है / एक तो पाण्डे हेमराजने अपनी दो रचनाओंमें कुँअरपाल ज्ञाताका उल्लेख किया है। 'सितैपट चौरासीबोल' में लिखा है नगर आगरेमैं बसै, कौरपाल सग्यान / तिस निमित्त कवि हेमन, कियउ कवित परवान / / और प्रवचनसारकी बालबोध-टीकामें लिखा है बालबोध यह कीनी जैसे, सो तुम सुणहु कहूँ मैं तैसे / नगर आगरेमैं हितकारी, कौरपाल ग्याता अधिकारी // 4 // तिनि बिचारि जियमैं यह कीनी, जो भाषा यह होइ नवीनी / अलपबुधी भी अरथ बखानै, अगम अगोचर पद पहिचान // 5 // यह विचार मनमें तिनि राखी, पांडे हेमराजसौं भाखी / आगै राजमल्लन कीनी, समयसार भाषारसलीनी // 6 // अब जो प्रवचनकी है भाखा, तो जिनधर्म बढे सौ साखा / सत्रहसै नव ओतरै, माघ मास सितपाख / पंचमि आदितबारकौं, पूरन कीनी भाख // इससे मालूम होता है कि सं० 1709 में कुँअरपाल आगरेमें अधिकारी ग्याता समझे जाते थे और उन्होंने राजमल्लजीकी बालबोधिनी टीकाके ढंगकी प्रवचनसारकी भी टीका लिखानेका यह प्रयत्न किया था। श्री अगरचन्द नाहटा द्वारा भेजे हुए दो पुराने गुटकोंमेंसे एक गुटका सं० 1684-85 में स्वयं कुँवरपालके हाथका लिखा हुआँ है और उसमें स्वयं १-चौरासी बोल' में रचनाका समय नहीं दिया है, परन्तु मेरी एक नोंध्रपोथीमें संवत् 1707 लिखा हुआ है। २-आनन्दघनके पद, द्रव्यसंग्रह भाषाटीका, फुटकर सवैया, और चतुर्विंशति स्थानानिके बाद लिखा है-" सं० 1684 आषाढ सु० 6 कौरा अमरसीका चोरडया श्री आगरामध्ये स्वयं पठनार्थ / " तत्त्वार्थके अन्तमें लिखा है - " सं० 1685 सावण सुदि 8 लि० कौरा / " योगसारके अन्तमें " सं० 1685 आसोज वदी 13 दिने / लि• कवरा स्वयं पठनार्थे / " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org