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________________ भगवतीदास पंच पुरुषोंमें ये तीसरे हैं / अर्धकथानकके अनुसार ये अध्यात्मज्ञानी वासूसाह ओसवालके पुत्र थे और बनारसीदास उनके यहाँ अपने कुटुंबसहित कोई छह महिनेतक ठहरे थे। यह संवत् 1655 की बात है। अभी तक इनकी भी कोई रचना नहीं मिली और न इनके विषयमें और कुछ ज्ञात हुआ। पं० हीरानन्दजीने अवश्य ही अपने पद्यबद्ध पंचास्तिकाय (वि० सं० 1711) एक 'भगौतीदास ग्याता'का उल्लेख किया है और उक्त पंचपुरुषों मेंके भगवतीदास ही पं० हीरानन्दके अभिप्रेत . मालूम होते हैं / ब्रह्मविलासके कर्ता भैया भगवतीदास भी आगरेके रहनेगले कटारियागोत्रके ओसवाल थे / परन्तु वे कोई और ही मालूम होते हैं / क्योंकि ब्रह्मविलासमें उनकी जितनी रचनायें संग्रहीत हैं वे संवत् 1731 से 1755 तक की हैं और नाटक समयसारकी रचना सं० 1693 में हुई है जिसमें बनारसीदासके साथ परमार्थकी चर्चा करनेवाले भगरतीदासका न म गिनाया है। उस समय उनकी उम्न 55-60 से कम न होगी। क्योंकि बनारसीदास उनके घर सं० 1655 में जाकर ठहरे थे। ब्रह्मविलासकी रचनायें सं० 1755 तक की हैं, अतएव तब तक बासूसाहुके पुत्र भगवतीदासके जीवित रहनेकी बात कष्टकल्पना होगी। कुँअरपाल अभी तक हम इतना ही जानते थे कि सोमप्रभकी सूक्तिमुक्तावलीका पद्यानुवाद बनारसीदासने कुँअरपालके साथ मिलकर किया था और बनारसीविलासमें संग्रहीत ज्ञान-बावनीमें भी कुँअरपालका उल्लेख है। बनारसीदोसने उन्हें अपना एकचित्त मित्र बतलाया है और महोपाध्याय मेघविजयने युक्तिप्रबोधमें लिखा है कि बनारसीदासके परलोकगत होनेपर कुँअरपालने उनके ५--तहाँ भगौतीदास है ग्याता, घनमल और मुरारि बिख्याता / २-बासूसाह अध्यातम-जान, बसै बहुत तिन्हकी संतान / बासूपुत्र भगौतीदास, तिन दीनौ तिन्हकों आवास / तिस मंदिरमैं कीनौ बास, सहित कुटुंब बनारसिदास || 142 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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