________________ अठारहवीं शताब्दिके रूपचन्द (रामविजय) का एक अष्ठक मिलता है जिसकी प्रति लश्करके श्वेताम्बर मन्दिरमें है / उसके अनुसार रूपचन्दका जन्म ओसवाल वंशके आंचलिया गोत्रमें मारबाड़के पाली नगर में हुआ था और स्वर्गवास संवत् 1834 में 90 वर्षकी अवस्था / इस हिसाबसे उनका जन्म 1744 में हुआ होगा।x * दतिया राज्यके सोनागिरिको कुछ लोगोंने नाटक समयसार टीकाका रचनास्थान बतलाया है, जो ठीक नहीं है। जालौर खरतरगच्छके साधुओंका केन्द्र रहा है। ' इनका 'गोतमीय कान्य' नामका एक संस्कृत काव्य है जो देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्डकी ओरसे प्रकाशित हो चुका है। उससे मालूम होता है कि इनका दूसरा नाम रामविजय था और जोधपुर के राजा अभयसिंह द्वारा ये सम्मानित थे / * बिनलाभसूरि ने सं० 1817 में इन्हें उपाध्यायपद दिया था। * इन सब बातोंसे स्पष्ट है कि नाटकसमयसारके टीकाकर्ता रूपचन्द न तो बनारसीदासजीके गुरु थे, न साथी और न समकालिक / वे श्वेताम्बर सम्प्रदायके थे और इस टीकाको ध्यानसे देखनेसे इसकी प्रतीति सहज ही हो जाती है। + वे जगह जगह लिखते हैं, "यह कथन दिगम्बर सम्प्रदायका है।" "याही प्ररूपणा दिगम्बर सम्प्रदायकी है। " " ये अठारह दूषण दिगम्बरसम्प्रदायके हैं। अन्य सम्प्रदायमें 18 दोष न्यारे कहे हैं।” ऊपर जो लेखककी प्रशस्ति दी गई है, उससे भी स्पष्ट है कि वे श्वेताम्बर खरतरगच्छके साधु थे / चतुर्भुज .. पंच पुरुषोंमें दूसरा नाम चतुर्भुजका है जो आगरेकी ज्ञातामण्डलीके एक सदस्य थे / इनके विषयमें बहुत कुछ प्रयत्न करनेपर भी हम और कुछ नहीं जान सके। x देखो, पृष्ठ 9 की पहली टिप्पणी। * ...तच्छिष्योऽभयसिंहनामनृपतेः लब्धप्रतिष्ठामहागंभीराहतशास्त्रतत्त्वरसिकोऽहं रूपचन्द्राह्वया / प्रख्यातापरनामरामविजयो गच्छेशदत्ताशया, काव्यं कार्षमिमं कवित्वकलया श्रीगौतमीये शुभम् / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org