________________ गुणवंत' और दयासिंहको 'बाणारसविरुदाल' विशेषण दिये हैं, सो क्या बनारसीदासको इंगित करते हैं ? . पूर्वोक्त दूसरी प्रतिके अन्तिम अंशसे मालूम होता है कि जिस समय बृहत्खरतर गच्छके प्रधान आचार्य जिनभक्तसूरि थे, उस समय उक्त गच्छकी ही क्षेमकीर्ति शाखामें विरागी कवि जिनहर्षके शिष्य सुखवर्धन, और उनके शिष्य दयालसिंह गणि हुए। नाटकसमयसारकी टोकाकी प्रतिमें लिपिकर्ताका जो परिचय दिया है उससे मालूम होता कि वे स्वयं पं० रूपचन्दजीके प्रशिष्य गजसार थे और उन्होंने शुद्धदन्तीपुर अर्थात् सोजत (मारबाड़) में पोषवदी 5 मंगलवार संवत् 1839 को प्रति लिखी थी। अर्थात् रचना-कालसे लगभग 47 वर्ष बाद इसकी प्रतिलिपि की गई है। सोनगिरिपुर जोधपुर राज्यका जालौर ही जान पड़ता है / जालौरके पासके पर्वतका नाम स्वर्णगिरिपुर है। इसका उल्लेख श्वेताम्बर साहित्यमें अनेक जगह हुआ है / बाद एक चातुर्मास करके स्वणगिरिशीर्षपर तीन जिन मन्दिर प्रतिष्ठापित किये। इसी स्वर्णगिरिके पासका नगर सोनगिरिपुर है। 1-" नन्दबह्निनागेन्दुवत्सरे विक्रमस्य च, पौषसितेतरपंचमीतियौ, धरणीसुतवासरे श्रीशुद्धिदन्तीपत्तने श्रीमति विजयसिंहाख्यसुराज्ये, बृहतखरतरगणे निखिलशास्त्रौघपारगामिनो महीयांसः श्रीक्षेमकीर्तिशाखोद्भवाः पाठकोत्तमपाठकाः श्रीभद्रूपचन्द्रगणयस्तच्छिष्यः पं० विद्याशीलमुनिसच्छिष्यो गजसारमुनिः समयसारनाटकग्रंथ लिखितम् / श्रीमद्गवडीपुराधीशप्रसादाद्भावके भूयात् पाठकानां श्रोतृणां छात्राणां शश्वत / श्रीरस्तु / " २-तपागच्छ पहावली में लिखा है-“ तत्र च श्रीयोधपुराधीश्वरश्रीगजसिंहराजस्य मुख्य मान्य श्री जयमल नाम्ना जालोरदुर्गे प्रतिष्ठात्रयमन्तरान्तरा चतुर्मासत्रयं श्रीगुरुणामाग्रहेण कारयित्वा स्वर्णगिरौ चैत्यं स्वकारितं प्रतिष्ठापयामास / " तपागणपतिगुणपद्धतिमें भी लिखा है कि विजयसिंहसूरिको जोधपुरनरेश गजसिंहके मंत्री जयमल्ल जालोर दुर्ग लाये और वहाँ एकके बाद एक तीन चौमासे करके स्वर्णगिरिशीर्षपर तीन मंदिर प्रतिष्ठापित किये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org