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________________ है। उन्हें भरतेश्वर, श्रेयान्स राजा, शक्र, आदि न जाने क्या क्या बना दिया है / ये रूपचन्द्र बोधविधानलब्धिके लिए वाराणसी गये थे और वहाँ पाणिनि व्याकरण, षट्दर्शन, आदि पढ़कर वहाँसे दरियापुर आ गये थे। शायद सेठ भगवानदासकी सहायतासे ही वे बनारस गये थे। शाहजहाँके राज्यमें संवत् 1692 में समवसरणपाठकी रचना हुई। पं० परमानंदजीने इस पाठक कर्त्ताको ही बनारसीदासका गुरु और दोहराशतक आदि हिन्दी कविताओंका कर्ता बतलानेका प्रयत्न किया है। परन्तु समवसरणपाठ सं० 1692 में रचा गया है और रूपचन्द्र पांडेकी मृत्यु इसके दो वर्ष बाद 1694 के लगभग हो चुकी थी। समयसामीप्यके सिवाय और कोई प्रमाण दोनोंकी एकता सिद्ध करनेके लिए नहीं दिया गया। वे हिन्दीके भी कवि थे, इसका कोई संकेत नहीं मिलता / इस ग्रन्थके सिवाय और भी कोई रचना उनकी है, यह अभीतक नहीं मालूम हुआ / उनके आगरे आनेका भी कोई उल्लेख नहीं है। इसके सिवाय वे पांडे भी नहीं थे। मुनि रूपचन्द्र बनारसीदासकृत नाटक समयसारकी भाषाटीकाके कर्ताका भी नाम रूपचन्द है, परन्तु ये न तो वे रूपचन्द्र हैं जिन्हें अर्धकथानकमें 'गुरु' और 'पाण्डे' कहा है और न परमार्थी दोहाशतक आदिके कर्त्ता रूपचन्द्र, जो बनारसीदासके साथी पंच पुरुषोंमेंसे एक थे। उन्होंने अपनी उक्त भाषाटीका नाटक समयसारकी रचनाके कोई सौ वर्ष बाद संवत् 1792 में बनाकर समाप्त की थी, इसलिए केवल नामसाम्यके कारण कोई इन्हें बनारसीदासका गुरु या साथी समझनेके अममें नहीं पड़ सकता। 1-70 नन्दलाल दिगम्बर-जैन-ग्रन्थमाला भिण्ड (ग्वालियर) द्वारा प्रकाशित / 2-- इस टीकाकी प्रस्तावना वयोवृद्ध पं० झम्मनलाल तर्कतीर्थने लिखी है और उसमे उन्होंने रूपचन्द्रको बनारसीदासका गुरु बतला दिवा है। (अर्थात गुरुने शिष्यके ग्रन्थपर टीका लिखी !) टीकाके अन्तमें छपी हुई प्रशस्ति आदि देखनेका कष्ट न तो तर्कतीर्थजीने उठाया और न ब्र० नन्दलालजीने। और भी कुछ लेखकोंने इन रूपचन्द्रको बनारसीदासका गुरु बनानेमें ही अधिक लाभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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