________________ बहुत ही सुन्दर गीत हैं।' उनकी 'अध्यात्म सवैया' नामक रचनाका परिचय अभी हाल ही पं० कश्तूरचन्द शास्त्री एम० ए० ने अनेकान्तमें दिया है। इसमें सब मिलाकर 101 इकतीसा तेईसा सवैया हैं; अर्थात् यह भी एक शतक है / नमूनेके तौरपर शतकका एक पद्य दिया जाता है - अनुभौ अभ्यासमैं निवास सुद्ध चेतनको, अनुभौसरूप सुद्ध बोधको प्रकास है / अनुभौ अनूप उपरहत अनंत ग्यान, अनुभौ अनीत त्याग ग्यान सुखरास है / / अनुभौ अपार सार आपहीको आप जानै, आपहीमैं ब्याप्त दीसै जामैं जड़ नास है। अनुभौ अरूप है सरूप चिदानंद चंद, ___ अनुभौ अतीत आठकमसौं अफास है। इनके सिवाय मंगलगीतप्रबन्ध (पंचमंगल), खटोलनागीत और नेमिनाथरासा नामकी तीन रचनाएँ और भी रूपचन्द्रकी मिलती हैं। इनमेंसे नेमिनाथ रासा और पंचमंगलका शब्दसाम्य और उपमासाम्य दोनोंको एक ही कर्ताकी रचना माननेका संकेत देते हैं और खटोलना गीतकी भी दो पंक्तियाँ पंचमंगलकी पंक्तियोंसे मिलती जुलती हैं-- सोरठ देस सुहावनो, पुहुमी पुर परसिद्ध / रस गोरस परिपूरनु, धन-जन-कनकसमिद्ध / रूपचन्द जन बीनवै, हौं चरननिको दासु / मैं इहलोक सुहावनो, बिरच्यौ किंचित रासु // १-इसके छह गीत जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय द्वारा ‘परमार्थ जकड़ीसंग्रह ' में प्रकाशित किये गये थे। बृहज्जिनवाणीसंग्रहमें भी इसके 10 गीत संग्रह किये गये हैं। २-देखो, अनेकान्त बर्ष 14, अंक 10 में 'हिन्दीके नये साहित्यकी खोज' शीर्षक लेख / ३-यह पंचमंगल नामसे घर घर पढ़ा जाता है। 4-5 - पं० परमानंदजी शास्त्रीने जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रहमें इन रचनाओंकी सूचना दी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org