________________ पाण्डे रूपचन्द और पं० रूपचन्द बनारसीदासने अपने नाटक समयसार में उन पाँच साथियोंका उल्लेख किया है जिनके साथ बैठकर वे परमार्थकी चर्चा किया करते थे'- पंडित रूपचंद, चतुर्भुज, भगवतीदास, कुँवरपाल और धर्मदास / इनमें सबसे पहले पंडित रूपचंद हैं। अर्धकथानकमें एक और रूपचन्द गुरुका उल्लेख है जो संवत् 1690 के लगभग आगरेमें तिहुना साहुके मन्दिरमें आकर ठहरे थे और सब अध्यात्मीयोंने जिनसे गोम्मटसार ग्रन्थ बँचाया / ये पूर्वोक्त पाँच साथियोंमेंके पं० रूपचन्दसे पृथक् हैं और इन्हें 'पाण्डे ' तथा 'गुरु' कहा है। गुरु रूपचन्दकी पाण्डे पदवीसे अनुमान होता है कि ये भी किसी भट्टारकके शिष्य थे। गोम्मटसार सिद्धान्तके सिवाय अध्यात्मके भी वे मर्मज्ञ होंगे और इसीलिए उनके उपदेशसे बनारसीदासकी डाँवाडोल अवस्थामें सुस्थिरता आई थी। इनकी कोई रचना अब तक नहीं मिली / पाण्डे हेमराजने पंचास्तिकायकी बालबोधटीकाके अन्तमें एक रूपचन्दका गुरु रूपसे स्मरण किया है-" यह (ग्रन्थ) श्री रूपचन्द गुरुके प्रसादथी पाण्डे हेमराजने अपनी बुद्धि माफिक लिखत कीना / " इस टीकाका रचनाकाल सं० 1721 है। नाटक समयसारकी समाप्ति सं० 1693 की आश्विन सुदी 13 रविवारको हुई है जिसमें एं० रूपचन्द आदि पाँच साथियोंकी परमार्थचर्चाका उल्लेख है जब कि पाण्डे रूपचन्दका स्वर्गवास इससे पहले ही हो चुका था। इसलिए दोनों रूपचन्द भिन्न भिन्न ब्यक्ति थे, इसमें कोई सन्देह न रहना चाहिए / साथी रूपचन्द भी बनारसीदास जैसे ही अध्यात्मरसिक सुकवि थे / श्री अगरचन्दजी नाहटा द्वारा भेजे हुए पुराने दो गुटकोंमें रूपचन्दकी ' दोहरा शतक' १-देखो, नाटक समयसारके अन्तिम अध्यायके पद्य 26-30 २-अधकथानक पद्य 630-35 / ३-पहला गुटगा बनारसीदासके एकचित्त मित्र कँवरपालके हाथका सं० 2684-85 का लिखा हुआ है। इसमें अध्यात्मकी और दूसरी बीसों पुरानी रचनाएँ संग्रह की गई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org