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________________ मर्मज्ञ थे। उनकी गुरुपरम्परामें भी शायद उनकी जोड़का कोई विद्वान् नहीं था / अध्यात्म-ज्ञानके प्रभावसे उनमें उदार मतसहिष्णुता भी थी / भारमल्लजी नागोरी तपागच्छके श्वेताम्बर भावक थे, फिर भी उन्होंने खुले दिलसे उनकी प्रशंसा की है। स्व० 0 शीतलप्रसादजीने समयसारके कलशोंकी राजमल्लीय टीकाकी प्रस्तावनामें अनेक प्रमाण देकर बतलाया है कि पंचाध्यायीके कर्ता और समयसार टीकाके का एक ही हैं / पंचाध्यायीमें कहा है स्पर्शरसगन्धवर्णा लक्षणभिन्ना यथा रसालफलो। कथमपि हि पृथक्कतु न तथा शक्यास्त्वखंडदेशभाक् / / 83 / / और बालबोध टीकामे यही बात यों कही है-- "-प्रथा एक आम्रफल स्पर्श रस गन्ध वर्ण विराजमान पुद्गलको पिंड छै तिहित स्पर्शमात्रकै विचारतां स्पर्शमात्र छै, रसमात्रकै विचारतां रसमात्र छै, गधमात्रक विचारणतां गंघमात्र छै, वर्णमात्रके विचारतां वर्णमात्र छै, तथा एक जीववस्तु त्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्त्रकाल, स्वभाव पिराजमानि छै तिहिते स्वद्रव्यरूप चारतां स्वद्रव्यमात्र छै, स्वक्षेत्ररूप विचारतां स्वक्षेत्रमात्र छै, स्वभावरूप विचारतां स्वनावमांत्र छै, तिहितें इसौ कह्यौ जी वस्तु सो अखडित है / अखंडित शब्दको इसो अर्थ छै।" __ पाण्डे राजमल्लजीने अपनेको काष्ठासंघके भट्टारक हेमचन्द्रकी आम्नायका बतलाया है और उनके समयमें क्षेमकीर्ति भट्टारक विद्यमान् थे जिनकी प्रशंसा लाटीसंहिताकी प्रशस्तिमें की गई है और शापद वे उन्हीं के शिष्योंमेंसे एक थे और इसीसे पाण्डे कहलाते थे / उन्होंने अपने ग्रन्थ आगरा, वैराट और नागोर आदि नगरोंमें रहते हुए रचे हैं। समयसारकलशोंकी बालबोध टीका उस समाकी जगापुर आगरा आदिकी गद्य भाषाका नमूना है। 'बनारसीविलाम' के परिचय में हमने उमक कुछ अंश दे दिये हैं। 1 तत्पद्देऽस्त्यधुना प्रतापनिलयः श्रीक्षेमकीर्तिर्मुनिः, हेवाहेयविचारचारुचतुरो भट्टारकोष्णांशुमान् / यस्य प्रोषधपारणादिसमये पादोदबिन्दूरकर ---- जर्जातान्येव शिरांसि धौतकलुषाण्याशाम्बराणां नृणाम् / / ... लाटीसंहिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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