________________ इससे सत्य क्या है सो तुम्हारी समझमें आ जायगा / हमारी समझमें ये राजा मल्ल वही हैं, जो जम्बूस्वामीचरित, लाटी- संहिता, अध्यात्मकमलमार्तण्ड, छन्दोविद्या (पिंगल) और पंचाध्यायी (अपूर्ण ) के कर्ता हैं। छन्दोविद्याको छोड़कर इनके शेष सब ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। बम्बूस्वामीचरितका रचनाकाल 1632, लाटीसंहिताका 1641 और अध्यात्मकमलमार्तण्डका 1644 है। छन्दोविद्याका रचनाकाल मालूम नहीं हुआ, पर वह अकबरके समयमें नागोरके महान् धनी राजा भारमल्ल श्रीमालको प्रसन्न करनेके लिए लिखा गया था / पंचाध्यायी चूँकि उनकी अपूर्ण रचना है, अतएव यह उनकी अन्तिम रचना बान पड़ती है। अरथमलने नाटक समयसारकी बालबोध टीका (भाषा) से० 1680 में बनारसीदासजीको दी थी। अतएव वह पंचाध्यायीसे कुछ पहले ही बन गई होगी। .. जम्बूस्वामी चरितकी रचना अग्रवालवंशी साहु टोडरकी प्रार्थनापर अर्गलपुर या आगरेमें, लाटीसंहिता साहु फामनके लिए वैगट नगरमें, और छन्दोविद्या महान् धनी राजा भारमल्ल श्रीमालके लिए शायद नागोरमें हुई। अध्यात्मकमलमार्तण्ड और पंचाध्यायी ये दो ग्रन्थ किसी के लिए नहीं, आत्मतुष्टिके लिए लिखे जान पड़ते हैं। अध्यात्मकमलमार्तण्ड 250 पद्योंका छोयसा ग्रन्थ है जिसके पहले परिच्छेदमें मोक्ष और मोक्षमार्गका लक्षण, दूसरेमें द्रन्यसामान्य, तीसरेमें द्रव्यविशेष और चौथेमें सात तत्त्व नव पदार्थोंका वर्णन है और इसके पठनका फल सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होना बतलाया है / डा. जगदीशचन्द्रजी जैनने जम्बूस्वामीचरितकी प्रस्तावनामें लिखा है कि " अमृतचन्द्रसूरिके आत्मख्यातिसमयसारकी तरह इसके आदिमें भी चिदात्मभावको नमस्कार करके संसारतापकी शान्तिके लिए कविने अपने ही मोहनीय कर्मके नाशके लिए इस प्रन्थकी रचना की है और उसमें कुन्दकुन्द आचार्य और अमृतचन्द्रको स्मरण किया है / कविने इस छोटेसे अन्यमें आत्मख्यातिके ढंगपर अनेक छन्द १-२-३-माणिक्यचन्द्र-बैनग्रन्थमाला, बम्बई द्वारा प्रकाशित / ४-सेठ नाथारंगजी गाँधी, शोलापुर द्वारा प्रकाशित / ५-देखो, अनेकान्त वर्ष 4 अंक 2-4 में 'राजमल्लका पिंगल / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org