________________ दोहरा तब फिरि और कबीसुरी, करी अध्यातममांहि यह वह कथनी एकसी, कहुं बिरोध किछु नांहि // 636 हृदैमांहि कछु कालिमा, हुती सरदहन बीच / सोऊ मिटि समता भई, रही न ऊंच न नीच 637 चोपई अब सम्यक दरसन उनमान / प्रगट रूप जानै भगवान // सोलह सै तिरानवै बर्ष / समैसार नाटक धरि हर्ष // 638 भाषा कियौ भानके सीस / कबित सातसै सत्ताईस अनेकांत परनति परिनयौ / संवत आइ छानवा भयौ 739 तब बनारसीके घर बीच / त्रितिये पुत्रकौं आई मीच बानारसी बहुत दुख कियौ / भयौ सोकसौं ब्याकुल हियौ 640 जगमैं मोह महा बलबान / करै एक सम जान अजान / बरस दोइ बीते इस भांति / तऊ न मोह होइ उपसांति 641 दोहरा केही पचावन बरस लौं, बानारसिकी बात / तीनि बिवाहीं भारजा, सुता दोइ सुत सात // 642 // नौ बालक हुए मुए, रहे नारि नारि नर दोइ / ज्यौं तरवर पतझार द्वै, रहैं ,ठसे होइ // 643 // तत्त्वदृष्टि जो देखिए, सत्यारथकी भांति / ज्यौं जाको परिगह पटै, त्यौं ताकौं उपसांति // 644 // 1 व चरम / 2 यह पद्य अ प्रतिमें नहीं है / 3 ब बात / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org