________________ 70 'अध्यातम बत्तीसिका. पैडी फाग धमाल'। कीनी ' सिंधुचतुर्दसी,' फूटक कबित रसाल // 626 'शिवपच्चीसी' भावना, ' सहस अठोत्तर नाम / ' 'करमछतीसी' ' झूलना', अंतर रावन राम // 627 बरनी 'आंखें दोइ बिधि, 'करी 'बचनिका' दोइ / / अष्टक ' ' गीत ' बहुत किए, कहौं कहा लौं सोइ // 628 सोलह सै बानवै लौं, कियौ नियत-रस-पान / पै कबीसुरी सब भई, स्यादवाद-परखांन / / 629 अनायास इस ही समय, नगर आगरे थान / रूपचंद पंडित गुनी, आयौ आगम-जान // 630 चोपई तिहेना साहु देहुरा किया। तहां आइ तिनि डेरा लिया / सब अध्यातमी कियौ बिचार / ग्रंथ बंचायौ गोमटसार // 631 तामैं गुनथानक परवांन / कयौ ग्यान अरु क्रिया-विधान / जो जिय जिस गुन-थानक होइ / तैसी क्रिया कर सब कोइ॥ 632 भिन्न भिन्न बिबरन बिस्तार / अंतर नियत बहिर बिबहार / / सैबकी कथा सबै बिधि कही। सुनिकै संसै कछुव न रही // 633 तब बनारसी औरै भयौ / स्यादबाद परिनति परिनयौ / पांड़े रूपचंद गुर पास / सुन्यौ ग्रंथ मन भयौ हुलास / / 634 फिरि तिस समै बरस द्वै बीच / रूपचंदकौं आई मीच // सुनि सुनि रूपचंदके बैन / बानारसी भयो दिढ़ जैन // 635 1 अतिहिना साह / 2 ड स सिव / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org